बांसुरी वाला हिंदी कहानी -bansuri vala hindi kahani
भारत के दक्षिण में एक मंदिर है जिसमें हज़ारों चूहे रहते है। इसी प्रकार बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में लाखों चूहे रहते थे। गाँव में ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहाँ चूहे न रहते हो। घर में, दुकान में, गोदाम में, खेतों में, खलियानों में, हर जगह चूहे ही चूहे नज़र आते थे। ये चूहे सभी खाने-पीने की चीज़ों गेहूँ, चावल, चना, बाजरा या अन्य कोई भी खाने का सामान हो सब खा जाते थे।
घर का सारा सामान, कपड़े, कागज-पत्र, फर्नीचर आदि सब कुतर देते थे। चूंहों के कारण सब गाँव वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ता था। चूंहों से सभी गाँव वाले बहुत परेशान थे। वे किसी भी कीमत पर इन चूहों से छुटकारा पाना चाहते थे।
एक दिन घूमता-घूमता एक बांसुरी वाला उस गाँव में आया। उसने गाँव वालों को चूहों से बहुत परेशान पाया। उसने गाँव वालों से कहा, "मैं तुम्हारे गाँव के सारे चूहों को खत्म कर दूँगा परंतु इसके बदले तुम लोगों को मुझे दो हज़ार रुपए देने होंगे। "
गाँव वालों ने बांसुरी वाले को दो हज़ार रुपया देना मंजूर कर लिया। बांसुरी वाले ने अपनी बांसुरी से ऐसा मधुर स्वर निकाला कि बाँसुरी कि आवाज़ सुनकर गाँव के सभी चूहों जो जहाँ था घरों, दुकानों, गोदामों तथा खेत-खलियानों से निकलकर दौड़ते हुए बाँसुरी वाले के पास एकत्रित होने लगे।
वह बाँसुरी बजाते हुए नदी की तरफ चल पड़ा। चूहे भी नाचते-गाते उछाल-कूद करते हुए उसके पीछे चल पड़े। वह नदी के पानी में उतर गया। चूहे भी उसके पीछे-पीछे नदी में कूद गए। इस तरह सभी चूहे पानी में डूबकर मर गए।
उसके बाद बाँसुरी वाला गाँव में वापिस लौटा। उसने गाँव वालों से अपने दो हज़ार रुपये माँगे, परंतु गाँव वालों ने उसे पैसे देने से इंकार कर दिया।
बाँसुरी वाले ने कहा, "तुम लोग बेईमान हो। अब मैं फिर से बाँसुरी बजा रहा हूँ। इस बार तुम लोगों को दस हज़ार रुपए देने पड़ेंगे। "
इस बार उसने पहले से भी अधिक मधुर बाँसुरी बजानी शुरू कर दी।
बाँसुरी की आवाज़ सुनकर गाँव वालों के सारे बच्चे 'जो जहाँ था ' वहाँ से निकल कर सड़क पर आ गए और मस्त होकर नाच-गाने लगे।
बाँसुरी वाला बाँसुरी बजाता रहा और बच्चे नाचते रहे। गाँव वाले न तो बाँसुरी वाले को बाँसुरी बजाने से रोक सके और न ही अपने बच्चों को नाचने से। गाँव वालों को लगा कि कहीं चूहों कि तरह उनके बच्चों के प्राण भी नाच-गाते समय निकल न जाए। उन्हें अब बाँसुरी वाले को पैसा न देने का बड़ा पछतावा हो रहा था।
आख़िरकार गाँव वालों ने बाँसुरी वाले से विनती की, कि वह अपने दस हज़ार रुपये ले ले और बाँसुरी को बजाना बंद कर दे।
बाँसुरी वाले ने बाँसुरी बजाना बंद कर दिया। बाँसुरी की आवाज़ बंद होते ही बच्चों ने भी नाचना-गाना बंद कर दिया और वापिस अपने घर लौट गए। बाँसुरी वाला भी पैसे लेकर अपने गाँव लौट गया। गाँव के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने राहत की सांस ली।
इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है "जैसे को तैसा"
0 Comments