सोन मछली Hindi kahani for kids Son Machli
मेरे पिताजी एक अध्यापक थे। जब वे घर होते तो हमेशा मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़ते रहते थे। एक दिन शाम को जब वे घर आये तो बहुत खुश थे। आते ही माँ से बोले, "देखो ! मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ। " माँ ने खुश होकर उपहार खोला और चौंककर बोली, "यह मेरे लिए क्या लाये हैं आप?"
'यु डी कोलोन' इसका मैं क्या करुँगी। मैं क्या दाढ़ी बनाती हूँ? अपने लिए लाये होंगे। मुझे तो परफ्यूम चाहिए।
माँ की आँखे डबडबा आई। मुझे भी लगा माँ दुखी हैं। मैं भी दुखी हो गया। उस घटना के बाद मैंने पिताजी से जिद की कि मुझे एक सोन मछली ला दो। मैं इस बिल्ले से खेलते-खेलते ऊब गया हूँ। मछुआरे और सोन मछली की कहानी मुझे अच्छी लगती थी। वह जादुई मछली आदमी की बोली बोलती तथा कहती, "हे मानव मुझे समुन्द्र मैं छोड़ दो तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगी। " मैं सोचता था एक बार सोन मछली घर आ जाए तो उससे माँ के लिए मनपसंद वस्तुएँ माँगुंग। मेरी माँ फिर हमेशा प्रसन्न रहेंगी।
मेरे पिताजी मुझसे आश्चर्य से पूछते, "तुम्हें मछली ही चाहिए?" मैंने भी दृढ़ता से कहा, "हाँ मुझे सोन मछली ही चाहिए। " दूसरे दिन वे मछली घर से एक सुनहरी मछली ले आए।
मैंने मछली के लिए एक छोटी-सी झोपड़ी बनाकर उसको काँच के बर्तन में रख दिया। मछली झोपड़ी के दरवाजे से अंदर जाती और खिड़की से बहार पानी में कूद लगाती। ऐसा वह दिन में कई बार करती। मैं उसे दाना देता और उसके खेल का आनंद लेता।
एक दिन शाम को मैं मछली के बर्तन के पास जाकर बोला, "सोन मछली, सोन मछली ! मेरी माँ के लिए परफ्यूम की शीशी ला दो। "
अगले दिन जैसे चमत्कार हो गया। पिताजी माँ के लिए परफ्यूम ले आए। माँ उसे देखते ही प्रसन्न हो ग। मैंने ने हँसते हुए माँ से कहा कि आप देखती रहो बहुत सी चीज़ें आएँगी।
अगले दिन मछली के बर्तन पर एक चिट लगी देख। मैंने चुपके से चिट उतार कर पढ़ी उस पर लिखा था -"अगड़म-बगड़म-बंबे बो। माँ का कहना मानो और काम में माँ की मदद करो। "
फिर क्या था, मैंने बिस्तर ठीक किया, किताबें, जूते, कपडे सही जगह रखे, मेज साफ़ की। मन-ही-मन कहा कि अब मैं अपना काम स्वयं ही।
करूँगा व माँ की सहायता भी करूँग। उस दिन से मैं सारा काम करने लगा। माँ मेरी प्रशंशा करती और कहती, "शाबाश बेटा! मेरा बेटा बड़ा हो गया है। "
मेरा जन्मदिन आने वाला था। मेरे सभी मित्र बड़ी साईकिल चलाते थे। माँगने पर पिताजी मनाकर देते थे। मैंने सोन मछली से दो पहियों वाली साईकिल चुपके से माँगी और अगली सुबह चमत्कार हो गया। मेरे बिस्तर के पास एक चमचमाती नई साईकिल रखी थी। मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा।
दोपहर के भोजन के बाद पिताजी ने मुझे कहा, "सोन मछली से अब कुछ दिनों तक कुछ मत माँगन। उसे आराम करने दो। "
अगले दिन जब मैं स्कूल से लौटा तो काँच के जार में सोन मछली नहीं थी। वहीँ पास में मेरा बिल्ला बैठा था और उसके मुँह में सोन मछली की पूछ दिखाई दे रही थी। मैं हाथ-पैर पटक कर जोर-जोर से रोने लगा। मेरे रोने की आवाज सुनकर पिताजी मेरे पास आए। मैंने रोते हुए पिताजी से कहा, "यह सब इस बिल्ले की हरकत है। इसे अभी मर दीजि। अभी तो मुझे सोन मछली से और उपहार माँगने थे।
अब मैं किससे अपने मन की बात करूँगा। पिताजी ने ढाढस बंधाते हुए कहा कि सोन मछली की पूँछ भी बहुत कुछ कर दिखाएगी। मैं बहुत उदास व निराश हो गया था। पर सोन मछली बाद में भी करामात दिखाती रही। मेरे जन्मदिन और नव वर्ष पर उपहार आते रहे।
बरसों बाद जब मैं बड़ा हो गया तब समझ में आया कि हमसे प्यार करने वाले और दिन-रात परिश्रम कर हमारी जरूरतों को पूरा करने वाले मेरे पिताजी ही वास्तव में मेरी सोन मछली थे।
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