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गाँव की झलक - the village hindi story

 गाँव की झलक

प्रिय मित्र अशोक

सप्रेम नमस्कार 

तुम्हारा पत्र मिला। बहुत ख़ुशी हुई। मैं इस बार तुम्हारे पत्र का जवाब शीघ्रता से नहीं दे सका क्योंकि इस बार गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नाना-नानी के गाँव शोभापुर चला गया था।  इस बार वहाँ मेरा इतना मन लगा कि मैं वहाँ से वापिस ही नहीं आना चाह रहा था। 

मित्र! गाँव के बारे में जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही काम है।  गाँधी जी का यह कथन "भारत गाँवों में बसता है" वास्तव में बिल्कुल सत्य है।  मैंने गाँव जाकर इस बात का अनुभव किया कि भारत का सच्चा सौन्दर्य गाँवों में ही है। यहाँ के लोग बहुत सरल व सीधे-साधे होते है।  गाँव के लोगों में 'सादा जीवन उच्च विचार' की झलक मिलती है।  इनके अंदर प्यार और स्नेह की झलक मिलती है जो इनमें कूट-कूटकर भरी होती है।  ये लोग बहुत ही परिश्रमी होते है।  ये छल कपट से कोसों दूर है।  मेहमानों का सत्कार बड़ी ही आत्मीयता व स्नेह से करते हैं।  गाँव के लोग दिखावे में फिजूल खर्ची करना पसंद नहीं करते हैं।  उन्हें जो भी रुखा-सूखा मिल जाता है वह बड़े ही चाव से कहते हैं।  मोटा व सस्ता कपड़ा पहनते हैं तथा मोटा अनाज कहते हैं।  गाँव के लोग प्रातःकाल सूर्यादय से पहले उठ जाते हैं।  वे अपने मवेशियों को चारा खिलाते हैं और दिन भर खेत में कड़ी मेहनत करते हैं। 

गाँव में मैं भी सुबह जल्दी उठ जाता था, फिर दैनिक क्रिया से निवृत्त हो जाता था।  मैं रोज गाय का दूध पीता और मामाजी के साथ खेत पर निकल जाता था।  यहाँ प्रातःकाल का मौसम बहुत ही सुहावना होता है।  चिड़ियों की चहचहाहट, कल-कल करती नदी का स्वर, दूर तक फैली हरियाली और लहलहाते खेत, फलों से लदे पेड़ से जो आत्मसंतोष और प्रसन्नता मिलती है वह शहरों के धुँआ उगलती चिमनियों, कारखानों, कलोरीन मिले पानी, सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों के कोलाहल, हवा की पहुँच से दूर घने बसे घरों के वातावरण में कहाँ मिलती है?

गाँव में ही मैंने प्रकृति का शुद्ध रूप देखा। जो आनंद मुझे यहाँ के कच्चे लिपे-पुते खपरैल से बने घरों, यहाँ के बाग-बगियों, खेत-खलिहानों में प्राप्त हुआ; वह मुझे शहर में कभी प्राप्त नहीं हुआ। शहर में तो हर तरफ मिलावट व धोखाधड़ी ही दिखाई पड़ती है। 

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गाँव में थोड़े दिन रहकर मुझे आभास हुआ कि यहाँ किसानों का बहुत शोषण हो रहा है।  जो सुविधाएँ गाँव वालों को मिलनी चाहिए थी वे उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। जो किसान दिन रात मेहनत करके हमारे लिए अनाज पैदा कर रहे हैं।  वही किसान बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भूखा मर रहा है।  भोले-भाले किसानों को सूदखोर महाजनों और मुनाफाखोर व्यापारियों के शोषण का शिकार होना पड़ता है।  यह सभी भारतवासियों के लिए कलंक और शर्मिंदगी की बात है। 

बढ़ती महँगाई और बेकारी ने ग्रामीणों के जीवन को कुंठित और निराशामय बना दिया है। गाँवों में अस्पतालों, विधालयों और रोजगार का अभाव है जिससे गाँवों से लोग शहरों की ओर पलायन करते है। 

गाँव की दुर्दशा देख कर मन द्रवित हो गया।  मैंने मन-ही-मन में यह संकल्प लिया है कि बड़ा होकर मैं डॉक्टर बनूँगा और गाँवों में जाकर लोगों का इलाज व सेवा करूँग। 

अच्छा मित्र! अब लिखना बंद करता हूँ।  पूजनीय चाचाजी और चाचीजी को मेरा सादर नमस्कार कहना। 


                                                                                                                                              तुम्हारा मित्र

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