सूरदास-प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स - Prabhu Ji Mere Avgun Chit Na Dharo
prabhu ji mere avgun chit na dharo - हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ / सूरदास
सूरदास जी द्धारा रचित भजन "प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो" एक बहुत ही सुंदर व् हृदय को छू जाने वाले भजनों में से एक है। इस भजन में सूरदास जी ने भक्त और भगवान के बहुत ही सुन्दर संबंध को दर्शाया है। और कैसे प्रार्थना की है उस परम पिता परमेश्वर से की मनुष्य गलतियों का पुतला है किन्तु भगवान आप तो सब जाणन्हार है तो आप क्यों नहीं मुझे पापों से मुकत करके अपने चरणों में समाहित कर लेते। सूरदासजी कहते हैं - मेरे स्वामी! हे प्रभु मेरे अवगुणो को हृदय में न धरिये, सभी प्राणी आपके लिए एक सामान है, मुझे अपनी शरण में लीजिये। जिस प्रकार लोहा पूजा की थाल में भी होता और एक निर्दयी कसाई के हाथ में भी किन्तु पारस बिना भेद भाव के दोनों को ही खरा सोना में बदल देता है, नदी नाले दोनों में पानी होता है किन्तु जब दोनों मिलते है तो सागर का रूप ले लेते है। इसी प्रकार सूरदासजी कहते हैं- यह शरीर माया (माया का कार्य) और जीव ब्रह्म (ब्रह्म का अंश) कहा जाता है, किंतु माया के साथ तादात्म्य हो जाने के कारण वह (ब्रह्मरूप जीव) बिगड़ गया है। अर्थार्त अपने स्वरूप से अलग हो गया। अब या तो आप इनको पृथक् कर दीजिये (जीव की अहंकार-ममता मिटाकर उसे मुक्त कर दीजिये), नहीं तो आपकी (पतितों का उद्धार करने की) प्रतिज्ञा टली (मिटी) जाती है। हे प्रभु इस बार मुझे मायावी संसार से बचा लीजिये मैं अकेला इसे पार नहीं कर सकता.
हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो |
सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो….
एक नदिया एक नाल कहावत, मैलो नीर भरो |
जब मिलिके दोऊ एक बरन भये, सुरसरी नाम परो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो...
एक माया एक ब्रह्म कहावत, सुर श्याम झगरो |
अब की बेर मुझे पार उतारो, नही पन जात तरो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो….
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
सूरदास जी द्धारा रचित हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ। - prabhu mere avgun chit na dharo lyrics
हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥
हिंदी अनुवादित
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरोसमदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो |
सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो….
एक नदिया एक नाल कहावत, मैलो नीर भरो |
जब मिलिके दोऊ एक बरन भये, सुरसरी नाम परो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो...
एक माया एक ब्रह्म कहावत, सुर श्याम झगरो |
अब की बेर मुझे पार उतारो, नही पन जात तरो ||
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो….
प्रभु जी मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो
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