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Hindi Muhavare in Hindi (मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग)

  मुहावरे (Muhavare) (Idioms) – Muhavare in Hindi Grammar, अर्थ सहित


Muhavare in Hindi (मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग)


हिन्दी मुहावरे का अर्थ और वाक्य


मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग इन हिन्दी


भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से संजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, 


फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में इनका जितना अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी।




चलिए सीखते है हिन्दी के महत्वपूर्ण  मुहावरे, उनके अर्थ और प्रयोग :- 


(अ)


१ . अंक में समेटना–(गोद में लेना, आलिंगनबद्ध करना)


शिशु को रोता हुआ देखकर माँ का हृदय करुणा से भर आया और उसने उसे अंक में समेटकर चुप किया।



२. अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना)


राजेश खर्चीला लड़का था। अब उसके पिता ने उसका जेब खर्च बन्द


करके उसकी फ़िजूलखर्ची पर अंकुश लगा दिया है।



३. अंग बन जाना–(सदस्य बनना या हो जाना)


घर के नौकर रामू से अनेक बार भेंट होने के पश्चात् एक अतिथि ने कहा, “रामू तुम्हें इस घर में नौकरी करते हुए काफी दिन हो गए हैं, ऐसा लगता .. कि जैसे तुम भी इस घर के 


अंग बन गए हो।”


४. अंग–अंग ढीला होना–(बहुत थक जाना)


सारा दिन काम करते करते, आज अंग–अंग ढीला हो गया है।



५. अण्डा सेना–(घर में बैठकर अपना समय नष्ट करना)


निकम्मे ओमदत्त की पत्नी ने उसे घर में पड़े देखकर एक दिन कह ही दिया, “यहीं लेटे–लेटे अण्डे सेते रहोगे या कुछ कमाओगे भी।”




६. अंगूठा दिखाना–(इनकार करना)


आज हम हरीश के घर ₹१ 0 माँगने गए, तो उसने अँगूठा दिखा दिया।

 


७. अन्धे की लकड़ी–(एक मात्र सहारा)


राकेश अपने माँ–बाप के लिए अन्धे की लकड़ी के समान है।


Muhavare in Hindi



८. अंन्धे के हाथ बटेर लगना–(अनायास ही मिलना)


राजेश हाईस्कूल परीक्षा में प्रथम आया, उसके लिए तो अन्धे के हाथ बटेर लग गई।




९. अन्न–जल उठना–(प्रस्थान करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले


जाना) रिटायर होने पर प्रोफेसर साहब ने कहा, “लगता है बच्चों, अब तो यहाँ से हमारा अन्न–जल उठ ही गया है। हमें अपने गाँव जाना पड़ेगा।”




१ 0. अक्ल के अन्धे–(मूर्ख, बुद्धिहीन)


“सुधीर साइन्स (साइड) के विषयों में अच्छी पढ़ाई कर रहा था, मगर उस अक्ल के अन्धे ने इतनी अच्छी साइड क्यों बदल दी ?” सुधीर के एक मित्र ने उसके बड़े भाई से पूछा।



१ १ . अक्ल पर पत्थर पड़ना–(कुछ समझ में न आना)


मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं, कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ।




१ २. अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना–(मूर्खतापूर्ण कार्य करना)


तुम हमेशा अक्ल के पीछे लट्ठ लिए क्यों फिरते हो, कुछ समझ–बूझकर काम किया करो।




१ ३. अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना–(महामूर्ख होना।)


राजू से साथ देने की आशा मत रखना, वह तो अक्ल का अंधा है।




१ ४. अपनी खिचड़ी अलग पकाना–(अलग–थलग रहना, किसी की न


मानना) सुनीता की पड़ोसनों ने उसको अपने पास न बैठता देखकर कहा, “सुनीता तो अपनी खिचड़ी अलग पकाती है, यह चार औरतों में नहीं बैठती।”




१ ५. अपना उल्लू सीधा करना–(स्वार्थ सिद्ध करना)


आजकल के नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं।




१ ६. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना–(आत्मप्रशंसा करना) राजू अपने मुँह .


मियाँ मिठू बनता रहता है।




१ ७. अक्ल के घोड़े दौड़ाना–(केवल कल्पनाएँ करते रहना)


सफलता अक्ल के घोड़े दौड़ाने से नहीं, अपितु परिश्रम से प्राप्त होती है।




१ ८. अँधेरे घर का उजाला–(इकलौता बेटा)


मयंक अँधेरे घर का उजाला है।


१ ९. अपना सा मुँह लेकर रह जाना–(लज्जित होना)


विजय परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर अपना–सा मुँह लेकर रह गया।




२0. अरण्य रोदन–(व्यर्थ प्रयास)


कंजूस व्यक्ति से धन की याचना करना अरण्य रोदन है।




२१ . अक्ल चरने जाना–(बुद्धिमत्ता गायब हो जाना)


तुमने साठ साल के बूढ़े से १ ८ वर्ष की लड़की का विवाह कर दिया, लगता है तुम्हारी अक्ल चरने गई थी।




२२. अड़ियल टटू–(जिद्दी)


आज के युग में अड़ियल टटू पीछे रह जाते हैं।




२३. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना)


अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगा।




२४. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना)


व्यवस्था के खिलाफ लड़ना अंगारों पर पैर रखना है।




२५. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना)


अन्धविश्वासी अज्ञानी जनता के मध्य मार्क्सवाद की बात करना अन्धे के आगे रोना है।




२६. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना)


अजय, “सिविल सेवकों को नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है” कहकर, अंगूर खट्टे वाली बात कर रहा है, क्योंकि वह परिश्रम के बावजूद नहीं चुना गया।




२७. अंगूठी का नगीना–(सजीला और सुन्दर)


विनय कम्पनी की अंगूठी का नगीना है।




२८. अल्लाह मियाँ की गाय–(सरल प्रकृति वाला)


रामकुमार तो अल्लाह मियाँ की गाय है।




२९. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना)


अपने दोस्त को चोरों से बचाने के चक्कर में, मैं ही पकड़ा गया और मेरी ही अंतड़ियों में बल पड़ गए।




३0. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना)


अपने गुरु को अन्धा बनाना सरल कार्य नहीं है, इसलिए मुझसे ऐसी बात मत करो।




३१ . अंग लगाना–(आलिंगन करना)


प्रेमिका को बहुत समय पश्चात् देखकर रवि ने उसे अंग लगा लिया।




३२. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना)


जून के महीने में अंगारे बरस रहे थे और रिक्शा वाला पसीने से लथपथ था।




३३. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना)


इस समस्या को हल करने में थोड़ी अक्ल खर्च करनी पड़ेगी।




३४. अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना)


अड्डे पर चहकते फिरते हो, बाहर निकलो तो तुम्हें देखा जाए।




३५. अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना)


उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों की बीवियाँ अन्धाधुन्ध पैसा लुटाती हैं।




३६. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना)


संजय ४000 रुपए कमाकर अपनी खाल में मस्त रहता है।




३७. अन्न न लगना–(खाकर–पीकर भी मोटा न होना)


अभय अच्छे से अच्छा खाता है, लेकिन उसे अन्न नहीं लगता।




३८. अधर में लटकना या झूलना–(दुविधा में पड़ा रह जाना)



३९. अठखेलियाँ सूझना–(हँसी दिल्लगी करना)


मेरे चोट लगी हुई है, उसमें दर्द हो रहा है और तुम्हें अठखेलियाँ सूझ रही हैं।




४0. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)


सिविल सेवा में चयन से अनुराग अंग नहीं समा रहा है।



४१ . अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना)


तुम अजीब व्यक्ति हो, सभी की सलाह को अंगूठे पर मार देते हो।




४२. अंटी मारना–(कम तौलना)


बहुत से पंसारी अंटी मारने से बाज नहीं आते।




४३. अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना)


दिन भर काम करा अब तो अंग टूट रहे हैं।




४४. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो)


पूँजीवादी व्यवस्था ‘अंधेर नगरी’ बनकर रह गई है।




४५. अंकुश न मानना–(न डरना)


युवा पीढ़ी किसी का अंकुश मानने को तैयार नहीं है।




४६. अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना)


अभी–अभी हुए प्लास्टर पर तुमने पानी डालकर अन्न का टन्न कर दिया।




४७. अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना)


हमारा अन्न–जल तो मेरठ में बदा है।




४८. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना)


पुलिस द्वारा बेटे की पिटाई करते देख पिता ने अपने अधर काट लिए।




४९. अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना)


विवेक तुम हमारी भी सुनोगे या अपनी ही हाँकते रहोगे।




५0. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक)


भ्रष्टाचार में लिप्त बाबूजी बड़ी शेखी बघारते थे, एक मामले में निलंबित होने पर वे अर्श से फर्श पर आ गए।


५१ . अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना)


बहुत ज्यादा परेशान करोगी तो तुम्हारे घर शिकायत कर दूंगा। सारी अलबी–तलबी धरी रह जाएगी।




५२. अस्ति–नास्ति में पड़ना–(दुविधा में पड़ना)


दो लड़कियों द्वारा पसन्द किए जाने पर वह अस्ति–नास्ति में पड़ा हुआ है और कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा है।




५३. अन्दर होना–(जेल में बन्द होना)


मायावती के राज में शहर के अधिकतर गुण्डे अन्दर हो गए।




५४. अरमान निकालना–(इच्छाएँ पूरी करना)।


बेरोज़गार लोग नौकरी मिलने पर अरमान निकालने की सोचते हैं।




(आ)


५५. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना)


बहुत से लोग सुलह सफ़ाई करने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में प्रवीण होते हैं।




५६. आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना)


भारत व पाक आपसी समझबूझ से आग पर पानी डाल रहे हैं।




५७. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना)


भाजपा और साम्यवादी पार्टी में आग–पानी या आग और फूस का बैर है।




५८. आँख लगना–(झपकी आना)


रात एक बजे तक कार्य किया, फिर आँख लग गई।




५९. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना)


जनता की निगाहों से अधिकतर नेता गिर गए हैं।




६0. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना)


पैसे वाले हो गए हो, अब क्यों पहचानोगे, आँखों पर चर्बी चढ़ गई है ना।




६१ . आँखें नीची होना–(लज्जित होना)


बच्चों की करतूतों से माँ–बाप की आँखें नीची हो गईं।




६२. आँखें मूंदना–(मर जाना)


आजकल तो बाप के आँखें मूंदते ही बेटे जायदाद का बँटवारा कर लेते हैं।




६३. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना)


अब तो तुम किसी की नहीं सुनते, लगता है, तुम्हारी आँखों का पानी ढल गया है।




६४. आँख का काँटा–(बुरा होना)


मनोज मुझे अपनी आँख का काँटा समझता है, जबकि मैंने कभी उसका बुरा नहीं किया।




६५. आँख में खटकना–(बुरा लगना)


स्पष्टवादी व्यक्ति अधिकतर लोगों की आँखों में खटकता है।




६६. आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति)


राज अपने माता–पिता की आँखों का उजाला है।




६७. आँख मारना–(इशारा करना)


रमेश ने सुरेश को कल रात वाली बात न बताने के लिए आँख मारी।




६८. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना)


शर्मा जी ने सच्चाई बताकर, मेरी आँखों से परदा हटा दिया।




६९. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना)


रामचन्द्र जी की अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में आँखें बिछा दीं।




७0. आँखों में धूल डालना–(धोखा देना)


सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ों की आँखों में धूल डालकर, अपने आवास से निकलकर विदेश पहुँच गए।




७१ . आँख में घर करना–(हृदय में बसना)


विभा की छवि राज की आँखों में घर कर गई।




७२. आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना)


चीन अब भी भारत की सीमाओं पर आँख लगाये हुए हैं।




७३. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना)


पोते को वर्षों बाद देखकर बाबा की आँखें ठण्डी हो गईं।




७४. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना)


ऐसे आँखें फाड़कर क्या देख रही हो, पहली बार मिली हो क्या?




७५. आँखें चार करना–(आमना–सामना करना)


एक दिन अचानक केशव से आँखें चार हुईं और मित्रता हो गई।




७६. आँखें फेरना–(उपेक्षा करना)


जैसे ही मेरी उच्च पद प्राप्त करने की सम्भावनाएँ क्षीण हुईं, सबने मुझसे आँखें फेर ली।




७७. आँख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना)


जी चाहता है तुम्हें आँख भरकर देख लूँ, फिर न जाने कब मिलें।




७८. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना)


पिता जी ने जैसे ही अपने छोटे से बच्चे को देखा, वैसे ही उनकी आँख खिल उठी।




७९. आँख चुराना–(कतराना)


जब से विजय ने अजय से उधार लिया है, वह आँख चुराने लगा है।




८0. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायब


कर देना) विवेक के देखते ही देखते उसका सामान गायब हो गया; जैसे किसी ने उसकी आँख का काजल चुरा लिया हो।




८१ . आँख निकलना–(विस्मय होना)


अपने खेत में छिपा खजाना देखकर गोधन की आँख निकल आई।




८२. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना)


अरुण ने अपने घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी केवल अपनी आँखें ही मैली की।




८३. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना)


कुछ डकैत पुलिस की आँखों में धूल झोंककर मुठभेड़ से बचकर निकल गए।




८४. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना)


रामपाल ने अपने ढीठ बेटे को जब तक आँखें न दिखायीं, तब तक उसने उनका कहना नहीं माना।




८५. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना)


पैसे न हो तो पत्नी भी आँखें तरेरती है।




८६. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय)


इकलौता बेटा अपने माँ–बाप की आँखों का तारा होता है।




८७. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना)


सुबोध को एंक के पश्चात् दूसरी मुसीबत घेर लेती है, आर्थिक तंगी में। उसका आटा गीला हो गया।




८८. आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना)


पति–पत्नी को एक–दूसरे पर विश्वास करना चाहिए, यह बात आँचल में बाँध लेनी चाहिए।




८९. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना)


बिना धन के कोई व्यापार करना आकाश में उड़ना है।




९0. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना)


मैं व्यवस्था को बदलने के लिए आकाश–पाताल एक कर दूंगा।




९१ . आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना)


किसी सामान्य व्यक्ति के लिए विधायक का पद आकाश–कुसुम हो गया




९२. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना)


शिक्षक की अनुपस्थिति में छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।




९३. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना)


सेठ जी किसी शुभ कार्य हेतु चन्दा देने के लिए आगा पीछा कर रहे हैं।




९४. आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना)


दिल्ली में आकाश से बातें करती बहुत–सी इमारतें हैं।




९५. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना)


वर्तमान व्यवस्था के विरोध में मीडिया में आवाज़ उठने लगी है।




९६. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना)


अपनी सामर्थ्य समझे बिना ईश्वर को चुनौती देकर तुम आकाश से तारे तोड़ना चाहते हो?




९७. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र)


राज ने निर्भय की बहुत सहायता की लेकिन वह तो आस्तीन का साँप निकला।




९८. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना)


दसवीं कक्षा में पुन: अनुत्तीर्ण होकर रमेश ने आठ–आठ आँसू रोये थे।




९९. आसन डोलना–(विचलित होना)


विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का आसन डोल गया।




१ 00. आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना)


अहिंसा द्वारा भारत में क्रान्ति लाकर गाँधीजी ने आग–पानी साथ रख दिया।




१ 0१ . आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना)


घर में चोरों को देखकर लालाजी की आधी जान सूख गई।




१ 0२. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना)


फ़िरोज़ खिलजी ने आपे से बाहर होकर फ़कीर को मरवा दिया।




१ 0३. आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना)


हमारे मुहल्ले के संजीव का कार्य तो आग लगाकर तमाशा देखना है।




१ 0४. आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना)


सुरेश के दिन अभी अच्छे नहीं हैं, अब भी आगे का पैर पीछे पड़ रहा है।




१ 0५. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना)


पढ़ाई समाप्त होते ही तुम्हें आटे दाल की फ़िक्र होने लगी है।




१ 0६. आधा तीतर आधा बटेर–(बेमेल चीजों का सम्मिश्रण)


सुधीर अपनी दुकान पर किताबों के साथ साज–शृंगार का सामान बेचना चाहता है। अनिल ने उसे समझाया आधा तीतर आधा बटेर बेचने से बिक्री कम रहेगी।




१ 0७. आग लगने पर कुआँ खोदना–(पहले से कोई उपाय न करना)


शर्मा जी ने मकान की दीवारें खड़ी करा लीं, लेकिन जब लैन्टर डलने का समय आया, तो उधार लेने की बात करने लगे। इस पर मिस्त्री झल्लाया–शर्मा जी आप तो आग लगने पर 


कुआँ खोदने वाली बात कर रहे हो।




१ 0८. आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे)


शिक्षक ने आव देखा न ताव और छात्र को पीटना शुरू कर दिया।




१ 0९. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना)


आतंकवादियों की हरकत देखकर पुलिस आयुक्त की आँखों में खून उतर आया था।




१ १ 0. आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना)


कई बार मना करने पर भी जब दिनेश नहीं माना, तो उसके चाचा जी उस पर आग बबूला हो उठे।




१ १ १ . आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को


त्यागकर ऐसे स्थान पर जाना जो अपेक्षाकृत अधिक कष्टप्रद हो) बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद किराना स्टोर करने पर दयाशंकर को ऐसा लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर के 


पेड़ पर अटक गया है।




१ १ २. आप मरे जग प्रलय–(मृत्यु उपरान्त मनुष्य का सब कुछ छूट जाना)


रामदीन मृत्यु–शैय्या पर पड़ा अपने बेटों के कारोबार के बारे में रह–रह पूछं रहा था। उसके पास एकत्र मित्रों में से एक ने दूसरे से कहा, “आप मरे जग प्रलय, रामदीन को बेटों के 


कारोबार की चिन्ता अब भी सता रही है।”




१ १ ३. आसमान टूटना–(विपत्ति आना)


भाई और भतीजे की हत्या का समाचार सुनकर, मुख्यमन्त्री जी पर आसमान टूट पड़ा।




१ १ ४. आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना)


अभी माँ–बाप की कमाई पर मौज कर लो, खुद कमाओगे तो आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।




१ १ ५. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना)


वीरेन्द्र ने सुरेश को आड़े हाथों लिया।




(इ)


१ १ ६. इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना)


आजकल कुछ नवयुवक इधर–उधर की हाँकते रहते हैं।




१ १ ७. इज्जत उतारना–(सम्मान को ठेस पहुँचाना)


दीनानाथ से बीच बाज़ार में जब श्यामलाल ने ऊँचे स्वर में कर्ज वसूली की बात की तो दीनानाथ ने श्यामलाल से कहा, “सरेआम इज्जत मत उतारो, आज शाम घर आकर अपने रुपए 


ले जाना।”




१ १ ८. इतिश्री करना–(कर्त्तव्य पूरा करना/सुखद अन्त होना)


अपनी दोनों कन्याओं की शादी करके रामसिंह ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली।




१ १ ९. इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना)


बहुत से व्यक्ति अपनी पत्नी के इशारों पर नाचते हैं।




१ २0. इधर की उधर करना–(चुगली करके भड़काना)


मनोज की इधर की उधर करने की आदत है, इसलिए उस पर विश्वास मत करना।




१ २१ . इन्द्र की परी–(अत्यन्त सुन्दर स्त्री)


राजेन्द्र की पत्नी तो इन्द्र की परी लगती है।




१ २२. इन तिलों में तेल नहीं–(किसी भी लाभ की आशा न करना)


कपिल ने कारखाने को देख सोच लिया इन तिलों में तेल नहीं और बैंक से ऋण लेकर बहन का विवाह किया।




(ई)


१ २३. ईंट से ईंट बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर देना)


असामाजिक तत्त्व रात–दिन ईंट से ईंट बजाने की सोचा करते हैं।




१ २४. ईंट का जवाब पत्थर से देना–(दुष्ट के साथ दुष्टता करना)


दुश्मन को सदैव ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।




१ २५. ईद का चाँद होना–(बहुत दिनों बाद दिखाई देना)


रमेश आप तो ईद का चाँद हो गए, एक वर्ष बाद दिखाई दिए।




१ २६. ईंट–ईंट बिक जाना–(सर्वस्व नष्ट हो जाना)


“चाचाजी का व्यापार फेल हो गया और उनकी ईंट–ईंट बिक गई।”




१ २७. ईमान देना/बेचना–(झूठ बोलना अथवा अपने धर्म, सिद्धान्त आदि के


विरुद्ध आचरण करना) इस महँगाई के दौर में लोग अपना ईमान बेचने से भी नहीं डर रहे हैं।




(उ)


१ २८. उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।)


सच्चे और ईमानदार व्यक्ति पर उँगली उठाना व्यर्थ है।




१ २९. उँगली पर नचाना–(वश में रखना)


श्रीकृष्ण गोपियों को अपनी उँगली पर नचाते थे।।




१ ३0. उड़ती चिड़िया पहचानना–(दूरदर्शी होना)


हमसे चाल मत चलो, हम भी उड़ती चिड़िया पहचानते हैं।




१ ३१ . उँगलियों पर गिनने योग्य–(संख्या में न्यूनतम/बहुत थोड़े)


भारत की सेना में उस समय उँगलियों पर गिनने योग्य ही सैनिक थे, जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।




१ ३२. उजाला करना–(कुल का नाम रोशन करना)


आई. ए. एस. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बृजलाल ने अपने कुल में उजाला कर दिया।




१ ३३. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना)


पुराने शानदार महलों के खण्डहरों में आज उल्लू बोलते हैं।




१ ३४. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना)


भारत कला और दस्तकारी का सामान निर्यात करता है, फिर भी कुछ लोग विदेशों से कला व दस्तकारी का सामान मँगवाकर उल्टी गंगा बहाते हैं।




१ ३५. उल्टी खोपड़ी होना–(ऐसा व्यक्ति जो उचित ढंग के विपरीत आचरण करता हो)


“चौधरी साहब, आपका छोटा बेटा बिल्कुल उल्टी खोपड़ी का है, आज फिर वह गाँव में उपद्रव मचा आया।” वृद्ध ने चौधरी को बताया।




१ ३६. उल्टे छुरे से मूंडना–(किसी को मूर्ख बनाकर उससे धन ऐंठना या अपना काम निकालना)


यह पुरोहित यजमानों को उल्टे छुरे से मूंडने में सिद्धहस्त है।




१ ३७. उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ना–(अल्प सहारा पाकर सम्पूर्ण की


प्राप्ति हेतु उत्साहित होना) रामचन्द्र ने नौकर को एक कमरा मुफ़्त में रहने के लिए दे दिया; थोड़े समय बाद वह परिवार को साथ ले आया और चार कमरों को देने का आग्रह करने 


लगा। इस पर रामचन्द्र ने कहा, तुम तो उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ने की बात कर रहे हो।




१ ३८. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना)


दुकानदार ने बताया कि दोनों कपड़ों में उन्नीस बीस का अन्तर है।




१ ३९. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना)


तुम मैच खेल रहे थे और मुझे उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हो कि स्कूल बन्द था और मैं स्कूल से दोस्त के घर चला गया था।




१ ४0. उड़न छू होना–(गायब हो जाना)


रीता अभी तो यहीं थी, मिनटों में कहाँ उड़न छू हो गई।




१ ४१ . उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना)


सक्सेना साहब तो थोड़ी–सी बात पर ही उबल पड़ते हैं।




१ ४२. उल्टी माला फेरना–(अहित सोचना)


अपने दोस्त के नाम की उल्टी माला फेरना बुरी बात है।




१ ४३. उखाड़ पछाड़ करना–(त्रुटियाँ दिखाकर कटूक्तियाँ करना)


उखाड़ पछाड़ करने में ही तुम निपुण हो, लेकिन त्रुटियाँ दूर करना तुम्हारे वश की बात नहीं है।




१ ४४. उम्र का पैमाना भर जाना–(जीवन का अन्त नज़दीक आना)।


वह अब बूढ़ा हो गया है, उसकी उम्र का पैमाना भर गया।




१ ४५. उरद के आटे की तरह ऐंठना–(क्रोध करना)


आप बहल पर उरद के आटे की तरह ऐंठ रहे हो, उसका कोई दोष नहीं है।




१ ४६. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना)


अनुज में बहुत–सी गन्दी आदतें आ गई हैं, उसके पैर ऊँचे–नीचे पड़ने लगे हैं।




१ ४७. ऊँट की चोरी झुके–झुके–(किसी निन्दित, किन्तु बड़े कार्य को गुप्त


ढंग से करने की चेष्टा करना) हमारे नेताओं ने घोटाला करने की चेष्टा करके उँट की चोरी झुके–झुके को सिद्ध कर दिया है।




१ ४८. ऊँट का सुई की नोंक से निकलना–(असम्भव होना)


पूँजीवादी व्यवस्था में आम जनता का जीवन सुधरना ऊँट का सुई की नोंक से निकलना है।




१ ४९. ऊधौ का लेना न माधौ का देना–(किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध न


रखना) वह बेचारा दीन–दुनिया से इतना तंग आ गया है कि अब वह सबके साथ ‘ऊधो का लेना, न माधौ का देना’ की तरह का व्यवहार करने लगा है।




(ए)


१ ५0. एक ही लकड़ी से हाँकना–(अच्छे–बुरे की पहचान न करना)


कुछ अधिकारी सभी कर्मचारियों को एक ही लकड़ी से हाँकते हैं।




१ ५१ . एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना)


आजकल के सभी नेता एक ही थैली के चट्टे–बट्टे हैं।




१ ५२. एड़ियाँ घिसना / रगड़ना–(सिफ़ारिश के लिए चक्कर लगाना)


इस दौर में अच्छे पढ़े–लिखे लोगों को भी नौकरी ढूँढने के लिए एड़ियाँ घिसनी पड़ती हैं।




१ ५३. एक म्यान में दो तलवारें–(एक वस्तु या पद पर दो शक्तिशाली


व्यक्तियों का अधिकार नहीं हो सकता) विद्यालय की प्रबन्ध–समिति ने दो–दो प्रधानाचार्यों की नियुक्ति करके एक म्यान में दो तलवारों वाली बात कर दी है।




१ ५४. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना)


पुलिस दल ने बदमाशों को मारकर एक ढेले से दो शिकार किए। उन्हें पदोन्नति मिली और पुरस्कार भी मिला।




१ ५५. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)


रमेश तुम तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।




१ ५६. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना)


राजा का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को एक आँख से देखे।




१ ५७. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना)


रिक्शे वाले एड़ी–चोटी पसीना एक कर रोजी कमाते हैं।




१ ५८. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना)


मालिक और नौकर एक–दूसरे की एक–एक नस पहचानते हैं।




१ ५९. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना)


राजा कृष्णदेवराय के समय शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे।




१ ६0. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना)


आगरा में मेरी परीक्षा है, इस बहाने ताजमहल भी देख लेंगे। चलो मेरे तो एक पंथ दो काज हो जाएंगे।




१ ६१ . एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है)


भाइयों को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।




१ ६२. ऐसी–तैसी करना–(दुर्दशा करना)


“भीमा मुझे बचा लो, वरना वह मेरी ऐसी–तैसी कर देगा।” लल्लूराम ने भीमा के पास जाकर गुहार की।




१ ६३. ऐबों पर परंदा डालना–(अवगुण छुपाना)


प्राय: लोग झूठ–सच बोलकर अपने ऐबों पर परदा डाल लेते हैं।




(ओ)


१ ६४. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना)


“अपने से चार गुना ताकतवर व्यक्ति से उलझने का मतलब है, ओखली में सिर देना, समझे प्यारे।” राजू ने रामू को समझाते हुए कहा।




१ ६५. ओस पड़ जाना–(लज्जित होना)


ऑस्ट्रेलिया से एक दिवसीय श्रृंखला बुरी तरह हारने से भारतीय टीम पर ओस पड़ गई।




१ ६६. ओले पड़ना–(विपत्ति आना)


देश में पहले भूकम्प आया फिर अनावृष्टि हुई; अब आवृष्टि हो रही है। सच में अब तो चारों ओर से सिर पर ओले ही पड़ रहे हैं।




(औ)


१ ६७. औने–पौने करना–(जो कुछ मिले उसे उसी मूल्य पर बेच देना)


रखे रखे यह कूलर अब खराब हो गया है, इसको तुरन्त ही औने–पौने में कबाड़ी के हाथ बेच दो।




१ ६८. औंधे मुँह गिरना–(पराजित होना)


आज अखाड़े में एक पहलवान ने दूसरे पहलवान को ऐसा दाँव मारा कि वह औंधे मुँह गिर गया।




१ ६९. औंधी खोपड़ी–(मूर्खता)


वह तो औंधी खोपड़ी है उसकी बात का क्या विश्वास।




१ ७0. औकात पहचानना–(यह जानना कि किसमें कितनी सामर्थ्य है)


“हमारे अधिकारी तुम जैसे नेताओं की औकात पहचानते हैं। चलिए, बाहर निकलिए।” चपरासी ने छोटे नेताओं को ऑफिस से भगाते हुए कहा।




१ ७१ . और का और हो जाना–(पहले जैसा ना रहना, बिल्कुल बदल जाना)


विमाता के घर आते ही अनिल के पिताजी और के और हो गए।




(क)


१ ७२. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना)


नगर के मेयर की अर्थी को सभी नागरिकों ने कंधा दिया।




१ ७३. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना)


आजकल मुनाफाखोरों के यहाँ कंचन बरस रहा है।




१ ७४. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना)


घोटाले में अपना हिस्सा न पाने पर सह–अभियुक्त ने पुलिस के सामने सारे राज उगल दिए थे।




१ ७५. कच्चा खा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर देने की धमकी देना)


जब से दोनों मित्र अशोक और नरेश की लड़ाई हुई है, तब से दोनों एक–दूसरे को ऐसे देखते हैं, जैसे कच्चा चबा जाना चाहते हों।




१ ७६. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना)


“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है। अब तो उनके कब्र में पाँव लटक गए हैं।” सोनी ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।




१ ७७. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना)


गरीब और कमजोर श्यामा को गाँव का चौधरी सबके सामने खरी–खोटी सुना गया, जिसको उसने कलेजे पर पत्थर रखकर सुना लिया।




१ ७८. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश)


उत्सवों पर उत्साह कढ़ी का सा उबाल बनकर रह गया है।




१ ७९. कलम का धनी–(अच्छा लेखक)


प्रेमचन्द कलम के धनी थे।




१ ८0. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा)


सार्थक मेरे कलेजे का टुकड़ा है।




१ ८१ . कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना)


जंगल से गुजरते वक्त शेर को देखकर मेरा कलेजा धक से रह गया।




१ ८२. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना)


भारतवर्ष की उन्नति देखकर चीन के कलेजे पर साँप लोटता है।




१ ८३. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना)


आशीष इन्जीनियर बन गया, माँ का कलेजा ठण्डा हो गया।




१ ८४. कली खिलना–(खुश होना)


बहुत पुराने मित्र आपस में मिले तो कली खिल गई।




१ ८५. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना)


घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुँह को आता हैं।




१ ८६. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना)


दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड़ थी कि लोगों के कंधे–से–कंधे छिल गए।




१ ८७. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)


राजेश से किसी बात को कहने का क्या लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है।




१ ८८. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना)


औरंगजेब ने मराठों से उलझकर अपने किए कराए पर पानी फेर दिया।




१ ८९. कान भरना–(चुगली करना)


मंथरा ने कैकेई के कान भरे थे।




१ ९0. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना)


जहाँ अधिकारी कान का कच्चा होता है वहाँ सीधे, सरल, ईमानदार कर्मचारियों को परेशानी होती है।




१ ९१ . कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना।


तुम हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।




१ ९२. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना)


दुर्घटनाग्रस्त पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा परिवार काँटों पर लोटता रहा।




१ ९३. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना)


राजीव के दूसरे प्रकाशन में जाने से बहुतों के रास्ते का काँटा दूर हो गया।




१ ९४. कोढ़ में खाज होना–(एक दुःख पर दूसरा दुःख होना)


मंगली बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहा था। ऊपर से भयंकर रूप से बीमार हो गया। यह तो सचमुच कोढ़ में खाज होना ही है।




१ ९५. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना)


विनीता बहुत कमजोर हो गई है। जरा–जरा सी बात पर काटने को दौड़ती है।




१ ९६. कान गरम करना–(दण्ड देना)


शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पड़ते हैं।




१ ९७. काम तमाम करना–(मार डालना)


भीम ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया।




१ ९८. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना)


नेताओं का कार्य एक–दूसरे पर कीचड़ उछालना रह गया है।




१ ९९. कट जाना–(अलग होना)


मेरी कड़वी बातें सुनकर वह मुझसे कट गया।




२00. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना)


कारगिल में बोफोर्स तोपों की मार से शत्रु के पैर उखड़ गए।




२0१ . कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना)


राम चालाकी में बड़े–बड़ों के कान कतरता है।




२0२. काफूर होना–(गायब हो जाना)


पेन किलर लेते ही मेरा दर्द काफूर हो गया।




२0३. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान)


मेरठ में कबाड़ी बाज़ार रेड लाइट एरिया काजल की कोठरी है, उधर जाने’ से बदनामी होगी।




२0४. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान)


झोला छाप डॉक्टरों पर अधिक विश्वास मत करो, ये तो कूप मण्डूक होते हैं।




२0५. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना)


सीता का हरण करके तो रावण की किस्मत ही फूट गई।




२0६. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा)


वह तो कुत्ते की दुम है, कभी सीधा नहीं होगा।




२0७. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना)


दंगों में तो लगता है, कुएँ में ही भाँग पड़ जाती है।




२0८. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना)


अब भी समय है, आँखे खोलो अन्यथा कौड़ी के मोल बिकोगे।




२0९. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना)


विनय ने लड़की के बाप के कान में डाल दिया कि वह मोटर साइकिल लेना चाहता है।




२१ 0. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति)


मुकेश से बचकर रहना, वह तो काला नाग है।




२१ १ . किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना)


कुछ लोगों द्वारा शराब पीकर हुड़दंग मचाने से पिकनिक का मजा किरकिरा हो गया।




२१ २. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना)


पिछले कुछ वर्षों में मेरठ की काया ही पलट गई है।




२१ ३. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना)


जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं उसी में गिरता है।




२१ ४. कूच कर जाना–(चले जाना)


सेना १ २ बजे कूच कर गई।




२१ ५. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना)


लाला रामप्रकाश कौड़ी–कौड़ी पर जान देता है, उससे मदद की आशा मत करो।




२१ ६. काले कोसों–(बहुत दूर)


लड़के की नौकरी काले कोसों दूर लगी है, उसका आना भी नहीं होता।




२१ ७. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना)


कुपथ पर चलने वाले कुत्ते की मौत मरते हैं।




२१ ८. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना)


वायसराय ने कहा, महादेव लेखन में कलम तोड़ देते हैं।




२१ ९. कसर लगना–(हानि या क्षति होना)


सेठ जी के पूछने पर उनके मुंशी ने बताया कि इस सौदे में उनको दस लाख रुपए की कसर लग गई।




२२0. कमर कसना–(तैयार होना)


अरुण ने पी. सी. एस. परीक्षा के लिए कमर कस ली है।




२२१ . कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना)


रामू ने जब मुन्ना की कलई खोल दी, तो उसका चेहरा फीका पड़ गया।




२२२. कसौटी पर कसना–(परखना)


श्याम परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा।




२२३. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना)


“मुझे सुधीर की बीमारी का इतना दुःख है कि मुझसे कहते नहीं बन पा रहा है।” राधा ने अपनी सहेली को बताया।




२२४. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना)


नौकरी चाहिए तो पहले अच्छी पढ़ाई करो। यों ही घर बैठे कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई बात नहीं बनने वाली।




२२५. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना)


दुष्ट व्यक्ति को चाहे जितना समझाओ, उसके कान पर तक नहीं रेंगती।




२२६. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना)


प्रश्न का उपयुक्त उत्तर दीजिए, कागज काले करने से क्या लाभ?




२२७. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना)


टी. टी. के अन्दर घुसते ही बिना टिकट यात्रियों को काठ मार गया।




२२८. कान काटना–(पराजित करना)


रमेश अपने वाक्चातुर्य से अनेक लोगों के कान काट चुका है।




२२९. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना)


आधी रात के समय कुत्तों को भौंकता देखकर, चौकीदार के कान खड़े हो गए।




२३0. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना)


तुम्हारे मोहल्ले के बच्चे तो बड़े बदतमीज़ हैं, इतना शोरगुल करते हैं कि कान खा जाते हैं।




२३१ . कालिख पोतना–(बदनामी करना)


“पर पुरुष से प्रेम करके उसने मुँह पर कालिख पोत ली।”




२३२. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला)


एकाग्रता के अभाव में किताबी कीड़े भी परीक्षा में असफल हो जाते हैं।




२३३. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति)


सेठ बनारसीदास का नौकर उनके लिए हमेशा किराए का टटू साबित होता है, क्योंकि वह बस उतना ही कार्य करता है, जितना कहा जाता है।




२३४. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना)


निशानेबाजी की प्रतियोगिता में विजयी होकर अरविन्द ने किला फ़तेह करने जैसी मिसाल कायम की।




२३५. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना)


स्मिथ और कविता शुरू में इसलिए कम मिला करते थे कि कहीं लोग उन्हें एक साथ देखकर कोई किस्सा न खड़ा कर दें।




२३६. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार)


एवरेस्ट पर चढ़ने वाला भारतीय दल पूरी तरह से कील काँटे से लैस था।




२३७. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना)


धर्मवीर ने अपने शत्रु पर इतना ज़ोरदार कुठाराघात किया कि वह एक ही बार में बेहोश हो गया।




२३८. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना)


सेनापति ने जिस समय कूच का डंका बजाया, तो सैनिक युद्ध स्थल की तरफ़ दौड़ गए।




२३९. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना)


भाई साहब थोड़ा–बहुत आराम भी कर लिया करो, आप तो कोल्हू का बैल हो रहे हैं।




२४0. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना)


“जब से नौकरी छूटी है हम तो कौए उड़ाने लगे।” सुमित ने अपने एक मित्र से अफसोस जाहिर करते हुए कहा।




२४१ . कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव)


रतन के पास इस समय पैसा नहीं है, मकान के टैक्स ने उसका कंगाली में आटा गीला कर दिया है।




(ख)


२४२. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)


परीक्षा में फेल होने पर रमेश को खरी–खोटी सुननी पड़ी।




२४३. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना)


मूर्ख व्यक्ति ही सदैव ख्याली पुलाव पकाते हैं, क्योंकि वे कुछ करने से पहले ही अपने ख्यालों में खो जाते हैं।




२४४. खाक में मिलना–(पूर्णत: नष्ट होना)


“राजन क्यों रो रहे हो ?” उसके एक मित्र ने पूछा, तो उसने रोते हुए जवाब दिया, “हमारा माल जहाज में आ रहा था, वह समुद्र में डूबा गया, मैं तो अब खाक में मिल गया।”


२४५. खाक छानना–(दर–दर भटकना)


आज के युग में अच्छे–अच्छे लोग बेरोज़गारी के कारण खाक छान रहे हैं।




२४६. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले)


मनमानी करने की आदत छोड़ दो क्योंकि यहाँ के कुछ नियम–कानून हैं, इसे ‘खालाजी का घर’ मत बनाओ।




२४७. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना)


राजनीति में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन है; अन्दर ही अन्दर एक–दूसरे के विरुद्ध खिचड़ी पकती रहती है।




२४८. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना)


“रणभूमि में अपने दुश्मन को हमेशा खीरा–ककड़ी समझकर उस पर टूट पड़ना चाहिए।” कमाण्डर अपने सैनिकों को समझा रहे थे।




२४९. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना)


हमारे किसान खून–पसीना एक करके अन्न पैदा करते हैं।




२५0. खेल–खेल में–(आसानी से)


आजकल लोग खेल–खेल में एम. ए. पास कर लेते हैं।




२५१ . खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना)


“कारगिल युद्ध में ‘बी फॉर यू’ टुकड़ी के केवल दो सैनिक ही खेत रहे थे।’ टुकड़ी के कमाण्डर ने अपने अधिकारी को बताया।




२५२. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना)


सभी विरोधी दल श्री नरेन्द्र मोदी की खोपड़ी को मान गए।




२५३. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना)


कारगिल पर पाकिस्तान के कब्जे से भारतीय सैनिकों का खून खौल उठा।




२५४. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना)


रमेश के सिर पर खून सवार हो गया जब उसने देखा कि कुछ लड़के उसके भाई को मार रहे थे।




२५५. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार)


राजीव तो सभी से खरा खेल फर्रुखाबादी खेलता है।




२५६. खुले हाथ–(उदारता से)


बहुत से धनी लोग खुले हाथ से दान देते हैं।




२५७. खून खुश्क होना–(भयभीत होना)


सेना को देख आतंकवादियों का भय से खून खुश्क हो जाता है।




२५८. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना)


यदि तुमने फिर चोरी की तो खाल उधेड़ दूंगा।




२५९. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना)


ससुराल में अपने घरवालों के विषय में आपत्तिजनक बातें सुनकर राधिका खून के चूंट पीकर रह गयी थी।




२६0. खून पीना–(तंग करना/मार डालना)


साहूकार ने तो किसानों का खून पी लिया है।




२६१ . खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना)


उस पर अनेक हत्या, अपहरण जैसे अभियोग हैं, उसे जघन्य कृत्य करने में संकोच नहीं है, क्योंकि उसका खून सफेद हो गया है।




२६२. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना)


छोटे–मोटे गुण्डे किसी खूटे के बल ही कूदते हैं।




(ग)


२६३. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना)


तुलसीदास द्वारा कृत रामचरितमानस जनता के गले का हार है।




२६४. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना)


आजकल पाकिस्तान गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, मगर भारत बड़े सब्र से काम ले रहा है।




२६५. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना)


राजनीति में लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।




२६६. गुरु घण्टाल–(बहुत धूर्त)


आपकी लापरवाही से आपका लड़का गुरु घण्टाल हो गया है।




२६७. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना)


“जब से मीना की शादी हुई है तब से तो उसकी नाक पर ही गुस्सा रहने लगा।” मीना की सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थीं।




२६८. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना)


आजकल बाजार में शुद्ध देशी घी मिलना गूलर का फूल हो गया है।




२६९. गाँठ बाँधना–(याद रखना)


यह मेरी बात गाँठ बाँध लो, जो परिश्रम करेगा, वही सफलता प्राप्त करेगा।




२७0. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला)


डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम गुदड़ी के लाल थे।




२७१ . गोबर गणेश–(बुद्ध)


आज के युग में गोबर गणेश लोगों की गुंजाइश नहीं है।




२७२. गाल फुलाना–(रूठना)


बच्चों को पढ़ाई करने को कहो, तो गाल फुला लेते हैं।




२७३. गँवार की अक्ल गर्दन में–(मूर्ख को दण्ड मिले, तभी होश में आता है।)


बहुत समझाने पर तुमने जुआ, चोरी, शराब पीने की आदत नहीं छोड़ी। जब पुलिस ने जमकर पीटा तभी तुमने यह बुरी आदतें छोड़ी। सचमुच तुमने साबित कर दिया, गँवार की अक्ल 


गर्दन में रहती है।




२७४. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध)


हम उसे अच्छी तरह जानते हैं, हम उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं।




२७५. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना)


बिहारी जी ने बिहारी सतसई में गागर में सागर भर दिया है।




२७६. गाल बजाना–(डींग हाँकना)।


तुम्हारे पास धेला नहीं, पता नहीं क्यों गाल बजाते फिरते हो।




२७७. गोल कर जाना–(गायब कर देना)


चालाक व्यक्ति सही बातों का उत्तर गोल कर जाते हैं।




२७८. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना)


मनोज का पी. सी. एस. में चयन हो गया, समझो उसने गढ़ जीत लिया।




२७९. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना)


व्यापारी गुस्सा पीना भली–भाँति जानता है।




(घ)


२८0. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना)


कल्लू बहुत अकड़ रहा था, साहब के डाँटने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।




२८१ . घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना)


घर फूंक तमाशा देखने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है।




२८२. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना)


मुझसे चाल मत चलो, मैं घाट–घाट का पानी पी चुका हूँ।




२८३. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना)


रामू अस्वस्थ तो था ही, परीक्षा में असफलता की सूचना ने घाव पर नमक छिड़क दिया।




२८४. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना)


हमने पढ़कर परीक्षा उत्तीर्ण की है, घास नहीं खोदी है।




२८५. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना)


पुलिस के हटते ही उपद्रवियों ने घात लगाकर दुर्घटना करने वाली बस पर हमला कर दिया।




२८६. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना)


पृथ्वीराज की मृत्यु सुनकर जयचन्द ने घी के दीए जलाए।




२८७. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना)


परीक्षा के बाद सभी छात्र कुछ दिन घोड़े बेचकर सोते हैं।




२८८. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना)


माया ने निहाल से दुश्मनी लेकर अपने खूब घोड़े दौड़ा लिए, लेकिन वह अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी।




२८९. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना)


रिश्तेदारों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।




२९0. घर का न घाट का–(कहीं का नहीं)


राजीव तुम पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते तो अच्छा होता। नौकरी के चक्कर में ‘न घर का न घाट का’ वाली स्थिति होने की आशंका अधिक है।




२९१ . घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना)


मनोज के पास पाँच भैंसे हैं, दूध की कोई कमी नहीं, घर में गंगा बहती है।




२९२. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना)


पुलिस के सामने चोर की घिग्घी बँध गई।




२९३. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना)


जब आते हो घोड़े पर चढ़े आते हो, थोड़ा सब्र करो, सौदा मिलेगा।




२९४. घट में बसना–(मन में बसना)


ईश्वर तो प्रत्येक व्यक्ति के घट में बसता है।




२९५. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना)


भूकम्प में उसका सर्वनाश हो चुका था, अब तो अभागे को घर काटे खाता है।




२९६. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना)


मेरे अतीत को छेडकर तमने मेरा घाव हरा कर दिया।




२९७. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना)


भारतीय क्रिकेट टीम के समक्ष टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया ने घुटने टेक दिए।




२९८. घूरे के दिन फ़िरना–(कमज़ोर आदमी के अच्छे दिन आना)


विधवा ने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला। अब बच्चे कामयाब हो गए हैं, तो अच्छा कमा रहे हैं। सच है घूरे के दिन भी फ़िरते हैं।




२९९. चक जमाना–(पूरी तरह से अधिकार या प्रभुत्व स्थापित होना)


चन्द्रगुप्त मौर्य ने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर चक जमा लिया था।




३00. चंगुल में फँसना–(मीठी–मीठी बातों से वश में करना)


आजकल बाबा लोग सीधे–सादे लोगों को चंगुल में फँसा लेते हैं।




३0१ . चाँदी का जूता मारना–(रिश्वत या घूस देना)


आजकल सरकारी कार्यालयों में बिना चाँदी का जूता मारे काम नहीं हो पाता है।




३0२. चाँद पर थूकना–(भले व्यक्ति पर लांछन लगाना)


महात्मा गाँधी की बुराई करना चाँद पर थूकना है।




३0३. चित्त पर चढ़ना–(सदा स्मरण रहना)


अनुज का दिमाग बहुत तेज है, उसके चित्त पर जो बात चढ़ जाती है, फिर वह उसे कभी नहीं भूलता।




३0४. चादर से बाहर पाँव पसारना–(सीमा के बाहर जाना)


चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग कष्ट उठाते हैं।




३0५. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शर्म के मारे मुँह न दिखाना)


आप इतने सभ्य परिवार के होते हुए भी दुष्कर्म करते हैं, आपको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।




३0६. चूलें ढीली करना–(अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट होना)


इस लेखन कार्य ने तो मेरी चूलें ही ढीली कर दीं।




३0७. चुटिया हाथ में होना–(संचालन–सूत्र हाथ में होना, पूर्णतः नियन्त्रण में होना)


“भागकर कहाँ जाएगा, उसकी चुटिया हमारे हाथ में है।” शत्रु के घर में उसे न पाकर चौधरी रणधीर ने उसकी पत्नी के सामने झल्लाकर कहा।




३0८. चेरी बनाना/बना लेना–(दास या गुलाम बना लेना)


“हमारे गाँव का प्रधान इतना शातिर दिमाग का है कि वह सभी जरूरतमन्द लोगों को चेरी बना लेता है।




३0९. चूना लगाना–(धोखा देना)


प्राय: विश्वासपात्र लोग ही चूना लगाते हैं।




३१ 0. चारपाई से लगना–(बीमारी से उठ न पाना)


ध्रुव की दुर्घटना क्या हुई, वह तो चारपाई से ही लग गया।




३१ १ . चण्डाल चौकड़ी–(निकम्मे बदमाश लोग)


राजनीति में प्राय: चण्डाल चौकड़ी नेता को घेरे रहती है।




३१ २. चाँद खुजलाना–(पिटने की इच्छा होना)


विनय तुम सुबह से शरारत कर रहे हो, लगता है तुम्हारी चाँद खुजला रही है।




३१ ३. चार दिन की चाँदनी–(कम दिनों का सुख)


दीपावली में खूब बिक्री हो रही है, दुकानदारों की तो चार दिन की चाँदनी है।




३१ ४. चचा बनाकर छोड़ना–(खूब मरम्मत करना)


ग्रामीणों ने चोर को चचा बनाकर छोड़ा।




३१ ५. चल बसना–(मर जाना)


लम्बी बीमारी के पश्चात् बाबा जी चल बसे !




३१ ६. चींटी के पर निकलना–(मरने के दिन निकट आना)


आजकल संजीव पुलिस से भिड़ने लगा है, लगता है चींटी के पर निकल आए हैं।




३१ ७. चोली दामन का साथ–(अत्यन्त निकटता)


पुलिस और पत्रकारों का तो चोली दामन का साथ है।




३१ ८. चैन की बंशी बजाना–(मौज़ करना)


जो लोग कम ही उम्र में काफी धन अर्जित कर लेते हैं, वे बाकी की ज़िन्दगी चैन की बंशी बजा सकते हैं।




३१ ९. चिराग तले अँधेरा–(अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता)


शाकाहार का उपदेश देते हो और घर में मांसाहारी भोजन बनता है, सच है चिराग तले अँधेरा।




३२0. चोर की दाढ़ी में तिनका–(अपराधी सदैव सशंक रहता है)


अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मन में हमेशा एक खटका बना रहता है मानो “चोर की दाढ़ी में तिनका’ हो।




३२१ . चार चाँद लगना–(शोभा बढ़ जाना)


किसी पार्टी में ऐश्वर्य राय के पहुँच जाने से पार्टी में चार चाँद लग जाते हैं।




३२२. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना–(आश्चर्य)


रिश्वत लेते पकड़े जाने पर सिपाही के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।




३२३. चूड़ियाँ पहनना–(कायर होना)।


चूड़ियाँ पहनकर बैठने से काम नहीं चलेगा, कुछ बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।




(छ)


३२४. छक्के छूटना–(हिम्मत हारना)


आन्दोलनकारियों ने अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए।




३२५. छप्पर फाड़कर देना–(अनायास ही धन की प्राप्ति)


ईश्वर किसी–किसी को छप्पर फाड़कर देता है।




३२६. छाती पर मूंग दलना–(निरन्तर दुःख देना)


वह कई वर्षों से घर में निठल्ला बैठकर अपने पिताजी की छाती पर – मूंग दल रहा है।




३२७. छाती भर आना–(दिल पसीजना)


दुर्घटनाग्रस्त सोहन को मृत्यु–शैय्या पर तड़पते देखकर उसके मित्र चिंटू की छाती भर आई।




३२८. छाँह न छूने देना–(पास तक न आने देना)


मैं बुरे आदमी को अपनी छाँह तक छूने नहीं देता।




३२९. छठी का दूध याद दिलाना–(संकट में डाल देना)


भारतीयों ने, पाकिस्तानी सेना को छठी का दूध याद दिला दिया।




३३0. छूमन्तर होना–(गायब हो जाना)


मेरा पर्स यहीं रखा था, पता नहीं कहाँ छूमन्तर हो गया।




३३१ . छक्के छुड़ाना–(हिम्मत पस्त करना)


भारतीय खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दिए।




३३२. छक्का –पंजा भूलना–(कुछ भी याद न रहना)


अधिकारी को देखते ही कर्मचारी छक्के–पंजे भूल गए।




३३३. छाती ठोंकना–(साहस दिखाना)


अन्याय के खिलाफ़ छाती ठोंककर खड़े होने वाले कितने लोग होते हैं।




(ज)


३३४. जान के लाले पड़ना–(जान पर संकट आ जाना)


नौकरी छूटने से उसके तो जान के लाले पड़ गए।




३३५. जबान कैंची की तरह चलना–(बढ़–चढ़कर तीखी बातें करना)


कर्कशा की जबान कैंची की तरह चलती है।




३३६. जबान में लगाम न होना–(बिना सोचे समझे बिना लिहाज के बातें करना)


मनोहर इतना असभ्य है कि उसकी जबान में लगाम ही नहीं है।




३३७. जलती आग में घी डालना–(क्रोध भड़काना)


धनुष टूटा देखकर परशुराम क्रोधित थे ही कि लक्ष्मण की बातों ने जलती आग में घी डालने का काम कर दिया।




३३८. जड़ जमना–(अच्छी तरह प्रतिष्ठित या प्रस्थापित होना)


अब तो नेता ने पार्टी में अपनी जड़ें जमा ली हैं। पार्टी उन्हें इस बार उच्च पद पर नियुक्त करेगी।




३३९. जान में जान आना–(चैन मिलना)


खोया हुआ बेटा मिला तो माँ की जान में जान आई।




३४0. जहर का चूँट पीना–(कड़ी और कड़वी बात सुनकर भी चुप रहना)


निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली आदमी की हर कड़वी बात को ज़हर के घूट की तरह पी जाता है।




३४१ . जिगरी दोस्त–(घनिष्ठ मित्र)


राम और श्याम जिगरी दोस्त हैं।




३४२. ज़िन्दगी के दिन पूरे करना–(कठिनाई में समय बिताना)।


आज के युग में किसान और मज़दूर अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहे हैं।




३४३. जीती मक्खी निगलना–(जान बूझकर अन्याय सहना)


आप जैसे समझदार को जीती मक्खी निगलना शोभा नहीं देता।




३४४. जी चुराना–(किसी काम या परिश्रम से बचने की चेष्टा करना)


पढ़ने–लिखने से मैंने एक दिन के लिए भी कभी जी नहीं चुराया।




३४५. ज़मीन पर पैर न रखना–(अकड़कर चलना)


जब से राजेश नायब तहसीलदार हुआ, वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता।




३४६. जोड़–तोड़ करना–(उपाय करना)


अब तो जोड़–तोड़ की राजनीति करने वालों की कमी नहीं है।




३४७. जली–कटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)


रमेश का कटाक्ष सुनकर सुरेश ने उसे खूब जली–कटी सुनाई थी।




३४८. जूतियाँ चाटना–(चापलूसी करना)।


स्वाभिमानी व्यक्ति किसी की जूतियाँ नहीं चाटता।




३४९. जान हथेली पर रखना–(प्राणों की परवाह न करना)


सेना के जवान जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करते हैं।




३५0. जितने मुँह उतनी बातें–(एक ही विषय पर अनेक मत होना)


ताजमहल के सौन्दर्य के विषय में जितनी मुँह उतनी बातें हैं।




३५१ . जी खट्टा होना–(विरत होना)


पुत्र के व्यवहार से पिता का जी खट्टा हो गया।




३५२. जामे से बाहर होना–(अति क्रोधित होना)


राजेश को यदि सरकण्डा कहो तो वह जामे से बाहर हो जाता है।




३५३. ज़हर की पुड़िया–(मुसीबत की जड़)


उसकी बातों पर मत जाना, वह तो ज़हर की पुड़िया है।




३५४. जोंक होकर लिपटना–(बुरी तरह पीछे पड़ना)


किसान के ऊपर साहूकार का ऋण जोंक की तरह लिपट जाता है।




३५५. जी भर आना–(दुःखी होना)


संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर मेरा जी भर आया।




३५६. जहर उगलना–(कड़वी बातें करना)


तुम जहर उगलकर किसी से अपना कार्य नहीं करा सकते।




३५७. झण्डा गड़ना–(अधिकार जमाना)


दुनिया में उन्हीं लोगों के झण्डे गड़े हैं, जो अपने देश पर कुर्बान होते हैं।




३५८. झकझोर देना–(हिला देना/पूर्णत: त्रस्त कर देना)


पिता की मृत्यु, ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया।




३५९. झाँव–झाँव होना–(जोरों से कहा–सुनी होना)


इन दो गुटों के बीच झाँव–झाँव होती रहती है।




३६0. झाडू फिरना/फिर जाना–(नष्ट करना)


वार्षिक परीक्षा के दौरान मार्ग–दुर्घटना में घायल होने के कारण राकेश की सारी मेहनत पर झाडू फिर गयी।




३६१ . झुरमुट मारना–(बहुत से लोगों का घेरा बनाकर खड़े होना)


युद्ध में सैनिक जगह–जगह झुरमुट मारकर लड़ रहे हैं।




३६२. झूमने लगना–(आनन्द–विभोर हो जाना)


ऋद्धि के भजनों को सुनकर सभागार में उपस्थित सभी लोग झूम उठे।




(ट)


३६३. टिप्पस लगाना–(सिफारिश करवाना)


आजकल मामूली काम के लिए मन्त्रियों से टिप्पस लगवाए जाते हैं।




३६४. टूट पड़ना–(आक्रमण करना)


भारत की सेना पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी और उसका विनाश कर दिया।




३६५. टेढ़ी खीर–(कठिन काम या बात)


हिमालय के शिखर पर चढ़ना टेढ़ी खीर है।




३६६. टका–सा जवाब देना–(साफ़ इनकार कर देना)


अटल जी ने अमेरिका को टका–सा जवाब दे दिया कि भारतीय सेना इराक नहीं जाएगी।




३६७. टाट उलटना–(दिवाला निकलना)


चाँदी की कीमत में एकाएक गिरावट आने से उसे भारी घाटा उठाना पड़ा और अन्तत: उसकी टाट ही उलट गई।




३६८. टोपी उछालना–(बेइज्जती करना)


तुमने अपने पिता की टोपी उछालने में कोई कमी नहीं की है।




३६९. टाँग अड़ाना–(व्यवधान डालना)


बहुत से लोगों को दूसरों के काम में टाँग अड़ाने की बुरी आदत होती है।




३७0. टाँय–टाँय फिस होना–(काम बिगड़ जाना)


व्यावहारिक बुद्धि के अभाव से मुहम्मद तुगलक की सारी योजनाएँ टाँय–टाँय फिस हो गईं।




३७१ . ठण्डे कलेजे से–(शान्त होकर/शान्त भाव से)


जनाब एक बार ठण्डे कलेजे से फिर सोच लीजिएगा, हमारी बात बन सकती




३७२. दूंठ होना–(निष्प्राण होना).


अब तो उसका समस्त परिवार दूंठ होने पर आया है।




३७३. ठन–ठन गोपाल–(पैसा पास न होना)


अधिक खर्च करने वालों की हालत यह होती है कि महीने के अन्त में ठन–ठन गोपाल हो जाते हैं।




३७४. ठौर–ठिकाने लगना–(आश्रय मिलना)


अजनबी को किसी भी शहर में जल्दी से ठौर–ठिकाना नहीं मिलता।




३७५. ठीकरा फोड़ना–(दोष लगाना)


राजनीतिक दल नाकामी का ठीकरा एक–दूसरे के सिर पर फोड़ते रहते हैं।




(ड)


३७६. डंक मारना–(घोर कष्ट देना)


वह मित्र सच्चा मित्र कभी नहीं हो सकता, जो अपने मित्र को डंक मारता हो।




३७७. डंड पेलना–(निश्चिन्ततापूर्वक जीवनयापन करना)


बाप लाखों की सम्पत्ति छोड़ गए हैं, बेटा राम डंड पेल रहे हैं।




३७८. डाली देना–(अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए कुछ भेंट देना)


घुसपैठिए अधिकारियों को डाली देकर ही सीमा पार कर सकते हैं।




३७९. डींग मारना–(अनावश्यक बातें कहना)


काम करने वाला व्यक्ति डींग नहीं मारता।




३८0. डूबना–उतराना–(संशय में रहना)


अपने कमरे में अकेली पड़ी मानसी रात–भर गहरे सोच–विचार में डूबती–उतराती रही।




३८१ . डंका बजना–(ख्याति होना)


सचिन तेन्दुलकर का डंका दुनिया में बज रहा है




३८२. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना–(बहुमत से अलग रहना)


राजेश सदा अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाता है।




३८३. डाढ़ी पेट में होना–(छोटी उम्र में ही बहुत ज्ञान होना)


आवेश के पेट में तो डाढ़ी है।




३८४. डेढ़ बीता कलेजा करना–(अत्यधिक साहस दिखाना)


सेना के जवान युद्ध क्षेत्र में डेढ़ बीता कलेजा करके जाते हैं।




३८५. ढंग पर चढ़ना–(प्रभाव या वश में करना)


प्रभात ने सुरेश को ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उसे ढंग पर चढ़ा दिया।




३८६. ढोंग रचना–(किसी को मूर्ख बनाने के लिए पाखण्ड करना)।


चतुर लोग अपना काम निकालने के लिए कई प्रकार के ढोंग रच लेते हैं।




३८७. ढिंढोरा पीटना–(प्रचार करना)


तुम्हें कोई बात बताना ठीक नहीं, तुम तो उसका ढिंढोरा पीट दोगे।




३८८. ढाई दिन की बादशाहत–(थोड़े समय के लिए पूर्ण अधिकार


मिलना) जहाँदारशाह की तो ढाई दिन की बादशाहत रही थी।




(त)


३८९. तंग आ जाना–(परेशान हो जाना)


उनकी रोज़–रोज़ की किलकिल से तो मैं तंग आ गया हूँ।




३९0. तकदीर का खेल–(भाग्य में लिखी हई बात)


अमीरी–गरीबी, यह सब तकदीर का खेल है।




३९१ . तबलची होना–(सहायक के रूप में होना)


चाटुकार और स्वार्थी कर्मचारी अपने अधिकारी के तबलची बनकर रहते




३९२. ताक पर रखना–(व्यर्थ समझकर दूर हटाना)


परीक्षा अब समीप है और तुमने अपनी सारी पढ़ाई ताक पर रख दी।




३९३. तीसमार खाँ बनना–(अपने को शूरवीर समझ बैठना)


गोपी अपने को तीसमार खाँ समझता था और जब गाँव में चोर आए, तो वह घर से बाहर नहीं निकला।




३९४. तिल का ताड़ बनाना–(किसी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना)


सुरेश हमेशा हर बात का तिल का ताड़ बनाया करता है।




३९५. तार–तार होना–(पूरी तरह फट जाना)


तुम्हारी कमीज तार–तार हो गई है, अब तो इसे पहनना छोड़ दो।




३९६. तेली का बैल–(हर समय काम में लगे रहना)


अनिल तो तेली के बैल की तरह काम करता रहता है।




३९७. तुर्की–ब–तुर्की बोलना–(जैसे को तैसा)


मैं आपसे शिष्टतापूर्वक बोल रहा हूँ, यदि आप और गलत बोले तो मैं तुर्की– ब–तुर्की बोलूँगा।




३९८. तीन–तेरह करना–(पृथक्ता की बात करना)


पाकिस्तान में ही अलगाववादी नेता पाकिस्तान को तीन तेरह करने की बात करते हैं।




३९९. तीन–पाँच करना–(टाल–मटोल करना)


आप मुझसे तीन–पाँच मत कीजिए, जाकर प्रधानाचार्य से मिलिए।




४00. तालू से जीभ न लगना–(बोलते रहना)


शीला की तो तालू से जीभ ही नहीं लगती हर समय बोलती ही रहती है।




४0१ . तूती बोलना–(रौब जमाना)


मायावती की बसपा में तूती बोलती है।




४0२. तेल की कचौड़ियों पर गवाही देना–(सस्ते में काम करना)


सुनील ने लालाजी से कहा कि आप अधिक पैसे भी नहीं देना चाहते और खरा काम चाहते हैं। भला तेल की कचौड़ियों पर कौन गवाही देगा।




४0३. तालू में दाँत जमना–(विपत्ति या बुरा समय आना)


पहले मुकेश की नौकरी छूट गई फिर बीबी–बच्चे बीमार हो गए। लगता है उनके तालू में दाँत जम गए हैं।




४0४. तेवर चढ़ना–(गुस्सा होना)


अपने पिताजी का अपमान होते देखकर राजीव के तेवर चढ़ गए थे।




४0५. तारे गिनना–(रात को नींद न आना)


रघु, राजीव की प्रतीक्षा में रात–भर तारे गिनता रहा।




४0६. तलवे चाटना–(खुशामद करना)


चुनाव की घोषणा होते ही चन्दा पाने के लिए राजनीतिक दल के नेता पूँजीपतियों के तलवे चाटने लगते हैं।




(थ)


४0७. थाली का बैंगन–(ढुलमुल विचारों वाला/सिद्धान्तहीन व्यक्ति)


सूरज थाली का बैंगन है, उससे हमेशा बचकर रहना।




४0८. थुड़ी–थुड़ी होना–(बदनामी होना)


शेरसिंह के दुराचार के कारण पूरे गाँव में उसकी थुड़ी–थुड़ी हो गई।




४0९. थैली का मुँह खोलना–(खुले दिल से व्यय करना)


बेटी के विवाह में सुलेखा ने थैली का मुँह खोल दिया था।




४१ 0. थूककर चाटना–(कही हुई बात से मुकर जाना)।


कल्याण सिंह ने थूककर चाट लिया और भाजपा में पुनः प्रवेश कर लिया।




४१ १ . थाह लेना–(किसी गुप्त बात का भेद जानना)


शर्मा जी की थाह लेना आसान नहीं है, वे बहुत गहरे इनसान हैं।




(द)


४१ २. दंग रह जाना–(अत्यधिक चकित रह जाना)


अन्त में अर्जुन और कर्ण का भीषण युद्ध हुआ, दोनों का युद्ध देखकर सारे। लोग दंग रह गए।




४१ ३. दाँतों तले उँगली दबाना–(आश्चर्यचकित होना)


शिवाजी की वीरता देखकर औरंगजेब ने दाँतों तले उँगली दबा ली।




४१ ४. दाल में काला होना–(संदेह होना)


राम और श्याम को एकान्त में देखकर मैंने समझ लिया कि दाल में। काला है।




४१ ५. दुम दबाकर भागना/भाग जाना/भाग खड़े होना–(चुपचाप भाग


जाना) घर में तीसमार खाँ बनता है और बाहर कमज़ोर को देखकर भी दुम दबाकर भाग जाता है।




४१ ६. दूध का दूध और पानी का पानी–(पूर्ण न्याय करना)


आजकल न्यायालयों में दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो पाता है।




४१ ७. दो नावों पर सवार होना–(दुविधापूर्ण स्थिति में होना या खतरे में


डालना) श्यामलाल नौकरी करने के साथ–साथ यूनिवर्सिटी की परीक्षा की तैयारी करते हुए सोच रहा था कि क्या उसके लिए दो नावों पर सवारी करना उचित रहेगा?




४१ ८. द्वार झाँकना–(दान, भिक्षा आदि के लिए किसी के दरवाजे पर जाना)


आप जैसे वेदपाठी ब्राह्मण, गुरु–दक्षिणा के लिए हमारे पास आएँ और यहाँ से निराश लौटकर किसी का द्वार झाँके, यह नहीं हो सकता।




४१ ९. दिन–रात एक करना–(प्रयास करते रहना)


श्यामलाल ने अपने मित्र गोपी को उन्नति करते देख कह ही दिया–“अब तो तुमने दिन–रात एक कर रखे हैं, तभी तो उन्नति कर रहे हो।”




४२0. दिमाग दिखाना–(अहम् भाव प्रदर्शित करना)


“क्या बताऊँ दोस्त, लड़के वाले तो आजकल बड़े दिमाग दिखा रहे हैं।” अपने एक मित्र के पूछने पर दिलावर ने बताया।




४२१ . दिन दूनी रात चौगुनी होना–(बहुत शीघ्र उन्नति करना)


अरिहन्त प्रकाशन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।




४२२. दूध का धुला होना–(बहुत पवित्र होना)


तुम भी दूध के धुले नहीं हो, जो मुझ पर दोष लगा रहे हो।




४२३. दाँत काटी रोटी–(घनिष्ठ मित्रता)


किसी समय मेरी उससे दाँत काटी रोटी थी।




४२४. दाना पानी उठना–(जगह छोड़ना)


विकास की तबदीली हो गई है, यहाँ से उसका दाना पानी उठ गया है।




४२५. दिल का गुबार निकालना–(मन की बात कह देना)


अजय ने सुनील को बुरा–भला कहा जिससे उसके दिल का गुबार निकल


गया।




४२६. दिन पहाड़ होना–(कार्य के अभाव में समय गुजारना)


जून के महीने में दिन पहाड़ हो जाते हैं।




४२७. दाहिना हाथ–(बहुत बड़ा सहायक होना)


अमर सिंह मुलायम सिंह का दाहिना हाथ था।




४२८. दमड़ी के तीन होना–(सस्ते होना)


अब वह जमाना गया जब दमड़ी के तीन सन्तरे मिलते थे।




४२९. दिन में तारे दिखाई देना–(बुद्धि चकराने लगना)


यदि ज़्यादा बोले तो ऐसा थप्पड़ मारूंगा दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।




४३0. दम भरना–(भरोसा करना)


अब तो तुम मुसीबत में फँसे हो, कहाँ है वे तुम्हारे सभी दोस्त, जिनका तुम दम भरते थे?




४३१ . दिमाग आसमान पर चढ़ना–(बहुत घमण्ड होना)


कभी–कभी उसका दिमाग आसमान पर चढ़ जाता है।




४३२. दर–दर की ठोकरें खाना–(बहुत कष्ट उठाना)


पूँजीवादी व्यवस्था में करोड़ों बेरोज़गार दर–दर की ठोकरें खा रहे हैं।




४३३. दाँत खट्टे करना–(पराजित करना)


भारत ने आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के टेस्ट सीरीज में दाँत खट्टे कर दिए।




४३४. दिल भर आना–(शोकाकुल होना या भावुक होना)


संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर दिल भर आया




४३५. दाँत पीसकर रह जाना–(क्रोध रोक लेना)


चीन के खिलाफ अमेरिका दाँत पीसकर रह जाता है।




४३६. दिनों का फेर होना–(भाग्य का चक्कर)


पहले गोयल साहब से कोई सीधे मुँह बात नहीं करता था, आज पैसा आ गया तो हर कोई उनके आगे–पीछे घूम रहा है। यही तो दिनों का फेर है।




४३७. दिल में फफोले पड़ना–(अत्यन्त कष्ट होना)


रमेश के पुन: अनुत्तीर्ण होने पर उसके दिल में फफोले पड़ गए हैं।




४३८. दाल जूतियों में बँटना–(अनबन होना)


पड़ोसी से पहले जैन साहब की घुटती थी, बच्चों में लड़ाई हो गई, तो अब दाल जूतियों में बँटने लगी।




४३९. देवता कूच कर जाना–(घबरा जाना)


पुलिस की पूछताछ से पहले ही नौकर के देवता कूच कर गए।




४४0. दो दिन का मेहमान –(जल्दी मरने वाला)


उसकी दादी बहुत बीमार हैं, लगता है बस दो दिन की मेहमान हैं।




४४१ . दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना–(छोटी–सी बात के लिए अधिक माँग


करना या दण्ड देना) मात्र एक कप का प्याला टूट गया तो तुमने उसे बुरी तरह मारा, इस पर पड़ोसी ने कहा तुम्हें दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना शोभा नहीं देता।




४४२. दुम दबाकर भागना–(डरकर कुत्ते की भाँति भागना)


पुलिस के आने पर चोर दुम दबाकर भाग गए।




४४३. दूध के दाँत न टूटना–(ज्ञान व अनुभव न होना)


अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं और चले हो बड़े–बड़े काम करने।




(ध)


४४४. धोती ढीली होना–(घबरा जाना)


जंगल में भालू देखते ही उसकी धोती ढीली हो गई।




४४५. धौंस जमाना–(रौब दिखाना/आतंक जमाना)


गाँव के एक अमीर और रौबदार आदमी को, गाँव के ही एक खुशहाल (खाते–पीते) व्यक्ति ने अपनी दुकान पर आतंक जमाते देखा तो कहा “चौधरी साहब आप अपना रौब गाँव वालों 


को ही दिखाया करो, मेरी दुकान पर आकर किसी प्रकार की धौंस न जमाया करो।”




४४६. ध्यान टूटना–(एकाग्रता भंग होना)


गुरु जी एकान्त कमरे में बैठे ध्यानमग्न थे। छोटे बालक के कमरे में प्रवेश करने तथा वहाँ की वस्तुओं को उठा–उठाकर इधर–उधर करने की खट–पट की आवाज़ से उनका ध्यान टूट 


गया।




४४७. ध्यान रखना–(देखभाल करना/सावधान रहना)


“प्रीति जरा हमारे बच्चों का ध्यान रखना। मैं मन्दिर जा रही हूँ।” अनामिका ने अपनी पड़ोसन को सजग करते हुए कहा।




४४८. धज्जियाँ उड़ाना–(दुर्गति)


सचिन ने शोएब अख्तर की गेंदबाजी की धज्जियाँ उड़ा दीं।




४४९. धूप में बाल सफ़ेद होना–(अनुभवहीन होना)


मैं तुम्हारा मुकदमा जीतकर रहूँगा, ये बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए हैं।




(न)


४५0. नंगा कर देना–(वास्तविकता प्रकट करना/असलियत खोलना)


रघु और दौलतराम का झगड़ा होने पर उन्होंने सरेआम एक–दूसरे को नंगा कर दिया।




४५१ . नंगे हाथ–(खाली हाथ)


“मनुष्य संसार में नंगे हाथ आता है और नंगे हाथ ही जाता है। इसलिए उसे चाहिए कि वह किसी के साथ बेईमानी या दुराचार न करे।” अपने प्रवचनों में गुरु महाराज लोगों को 


उपदेश दे रहे थे।




४५२. नमक–मिर्च लगाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)


चुगलखोर व्यक्ति नमक–मिर्च लगाकर ही कहते हैं।




४५३. नुक्ता–चीनी करना–(छिद्रान्वेषण करना)


“तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि तुम मेरे काम में नुक्ता–चीनी मत किया करो।”




४५४. निन्यानवे के फेर में पड़ना–(धन संग्रह की चिन्ता में पड़ना)


व्यापारी तो हमेशा निन्यानवे के फेर में लगे रहते हैं।




४५५. नौ दो ग्यारह होना–(भाग जाना)


चोर मकान में चोरी कर नौ दो ग्यारह हो गए।




४५६. नाच नचाना–(मनचाही करना)


रमेश और सुरेश दोनों मिलकर राकेश को नाच नचाते हैं।




४५७. नाक भौं चढ़ाना–(असन्तोष प्रकट करना)


सोनिया गाँधी के गठबन्धन पर भाजपा नाक भौं चढ़ा रही है।


४५८. नीला–पीला होना–(गुस्सा होना)


मालिक तो मज़दूरों पर प्राय: नीला–पीला होते रहते हैं।




४५९. नाको–चने चबाना–(बहुत तंग होना)


लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों को नाको चने चबवा दिए।




४६0. नीचा दिखाना–(अपमानित करना)


चुनाव से पूर्व भाजपा और कांग्रेस एक–दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।




४६१ . नाक में नकेल डालना–(वश में करना)


प्रतिपक्ष ने अपनी मांगों को लेकर केन्द्र सरकार की नाक में नकेल डाल रखी है।




४६२. नमक अदा करना–(उपकारों का बदला चुकाना)


जयसिंह ने शिवाजी को हराकर औरंगजेब का नमक अदा कर दिया।




४६३. नाक कटना–(इज्जत चली जाना)


आज तुमने बदतमीज़ी करके सबकी नाक कटवा दी।




४६४. नाक रगड़ना–(बहुत विनती करना)


सरकारी कर्मचारी रिश्वत वाली सीट प्राप्ति के लिए अधिकारियों के आगे नाक रगड़ते हैं।




४६५. नकेल हाथ में होना–(वश में होना)


उत्तर भारत में साधारणतया घर की नकेल पुरुष के हाथों में होती है।




४६६. नहले पर दहला मारना–(करारा जवाब देना)




४६७. नानी याद आना–(मुसीबत का एहसास होना)


इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करते–करते तुम्हें नानी याद आ गई।




४६८. नाक का बाल होना–(अत्यन्त प्रिय होना)


मनोज तो नेता जी की नाक का बाल है।




४६९. नस–नस पहचानना–(किसी के अवांछित व्यवहार को विस्तार से जानना)


मालिक और मज़दूर एक–दूसरे की नस–नस को पहचानते हैं।




४७0. नाव में धूल उड़ाना–(व्यर्थ बदनाम करना)


मेरे विषय में सब लोग जानते हैं, तुम बेकार में नाव में धूल उड़ाते हो।




(प)


४७१ . पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना)


मेरी बात पत्थर की लकीर समझो।




४७२. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना)


वर्षा में मकान गिरने की सूचना पाकर राम पर पहाड़ टूट पड़ा।




४७३. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना)


कृपाशंकर ने जब से गल्ले का व्यापार किया, तब से उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।




४७४. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना)


लड़के का कुकृत्य सुनकर सेठ जी का पानी उतर गया।




४७५. पेट में दाढ़ी होना–(चालाक होना)


मुल्ला जी से कोई लाभ नहीं उठा पाएगा, उनके तो पेट में दाढ़ी है।




४७६. पेट का पानी न पचना–(अत्यन्त अधीर होना)


“बिना गाली दिए तेरे पेट का पानी नहीं पचता क्या?” बार–बार गाली देते देखकर सोहन ने अपने एक मित्र को टोका।




४७७. पीठ में छुरा भोंकना–(विश्वासघात करना)


जयन्ती लाल ने अपनी पहचान के शराबी, जुआरी लड़के से श्यामलाल की। बेटी की शादी कराकर, दोस्ती के नाम पर श्यामलाल की पीठ में छुरा भोंकने का–सा कार्य कर दिया।




४७८. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना)


मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊँगा शादी नहीं करूंगा।




४७९. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना)


जब रामपाल की करतूतों की पोल खुली तो वह पानी–पानी हो गया।




४८0. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना)


लाला जी ने फूलचन्द की लड़की की शादी में रुपए देकर उनकी पगड़ी रख ली।




४८१ . पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना)


जल्दी से खाना दे दो, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।




४८२. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना)


हैदर अली की सेना के समक्ष अंग्रेज़ों के पैर उखड़ गए।




४८३. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना)


मैंने इण्टर में हिन्दी में विशेष योग्यता लाकर पत्थर पर दूब जमा दी।




४८४. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना)


सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी पाने के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।




४८५. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला)


नीरज से कोई रहस्य मत बताना, वह तो पेट का हल्का है।




४८६. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना)


अजीब इनसान हो, तुम्हारी पटरी किसी से नहीं बैठती।




४८७. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना)


तुम्हारी पीठ पर विधायक जी का हाथ है, इसीलिए इतराते फ़िरते हो।




४८८. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना)


तुम्हारे न आने से मेरे तो पाँव तले ज़मीन खिसक गई थी।




४८९. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना)


प्राइवेट नौकरी कर रहे हो, ज़रा पाँव फूंक–फूंक कर रखो।




४९0. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना)


भारतीय सैनिक युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।




४९१ . पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना)


सम्राट अशोक ने लगभग पूरे भारत पर शासन किया, वह पानी में आग लगाने की क्षमता रखता था।




४९२. पंख न मारना–(पहुँच न होना)


अयोध्या के चारों ओर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था थी कि परिन्दा भी पर न मार सके।




(फ)


४९३. फ़रिश्ता निकलना–(बहुत भला और परोपकारी सिद्ध होना)


“जिसको तुम अपना दुश्मन समझती थी, उसने तुम्हारे बेटे की नौकरी लगवा दी। देखा, वह बेचारा कितना बड़ा फरिश्ता निकला हमारे लिए।”




४९४. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना)


“तुम तो हमेशा ही मुझ पर फिकरे कसती रहती हो, दीदी को कुछ नहीं कहती।”




४९५. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना)


“तुम्हारी बात में वजन तो था, लेकिन रामशरण की बात के सामने तुम्हारी बातफीकी पड़ गई।




४९६. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना)


पृथ्वीराज जयचन्द को फूटी आँख भी नहीं भाते थे।




४९७. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना)


पुत्र की उन्नति देखकर माता–पिता फूले नहीं समाते हैं।




४९८. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना)


गोयल साहब इतना कम खाते हैं, मानो फूल सूंघकर रह जाते हों।




४९९. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना)


इतिहास साक्षी है कि पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते समय भारत को फूंक–फूंक कर पाँव रखने होंगे।




५00. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना)


संतू ने जब सुना कि उसकी बेटी ने उत्तर प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं, तो वह खुशी के मारे फूलकर कुप्पा हो गया।




५0१ . फावड़ा चलाना–(मेहनत करना)


मजदूर फावड़ा चलाकर अपनी रोजी–रोटी कमाता है।




५0२. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना)


लीडर ने मजदूरों में क्या फूंक मार दी, जिससे उन्होंने हड़ताल कर दी।




५0३. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना)


संजय किसी बात पर कई दिनों से मुझसे नाराज़ था, आज जाने क्या हुआ फट पड़ा।




५0४. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना)


हृदय प्रताप के व्यापार का ऐसा बंटाधार हुआ कि वह आज तक नहीं पनप पाया।




५0५. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना)


जीवन में कभी–कभी बहती गंगा में हाथ धोने के अवसर मिल जाते हैं।




५0६. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना)


गिरिराज लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तो उसके परिवार वाले बाग–बाग हो उठे।




५0७. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना)


क्रान्तिकारियों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बीड़ा उठा लिया है।




५0८. बेपर की उड़ाना–(अफवाहें फैलाना/निराधार बातें चारों ओर


करते फिरना) “कुछ लोग बेपर की उड़ाकर हमारी पार्टी को बदनाम करना चाहते हैं। अत: मेरा अनुरोध है कि कोई भी सज्जन ऐसे लोगों की बातों में न आएँ।” नेताजी मंच पर खड़े 


जनता को सम्बोधित कर रहे थे।




५0९. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना)


रिश्वत लेते पकड़े जाने पर अधिकारी की शान में बट्टा लग गया।




५१ 0. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना)


चन्द्रबाबू नायडू नक्सलवादी हमले में बाल–बाल बचे थे।




५१ १ . बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना)


जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।




५१ २. बालू में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना)


बढ़ती महँगाई को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब महंगाई को दूर करना बालू में से तेल निकालने के समान हो गया है।




५१ ३. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)


लड़का पी. सी. एस. हो गया तो सक्सेना साहब की बाँछे खिल गईं।




५१ ४. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना)


मनोज ने सबके सामने संजय की बखिया उधेड़कर रख दी।




५१ ५. बच्चों का खेल–(सरल काम)


भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम में शामिल होना कोई बच्चों का खेल नहीं है।




५१ ६. बाएँ हाथ का खेल–(अति सरल काम)


अर्द्धशतक लगाना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल था।




५१ ७. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना)


राजीव ने कह दिया तो समझो वह नहीं जाएगा, वह अपनी बात का धनी है।




५१ ८. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना)


गिरीश मोहन तो बेसिर पैर की बात करता है।




५१ ९. बछिया का ताऊ–(मूर्ख)


शिवकुमार से यह काम नहीं होगा, वह तो बछिया का ताऊ है।




५२0. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना)


राजू अपने अपराध के कारण ही बड़े घर की हवा खा रहा है।




५२१ . बेदी का लोटा–(ढुलमुल)


मनोज की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह तो बेपेंदी का लोटा है।




५२२. बल्लियाँ उछलना–(बहुत खुश होना)


अपने अरिहन्त प्रकाशन में सेलेक्शन की बात सुनकर वह बल्लियाँ उछलने लगा।




५२३. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब)


खचेडू पंसारी का हिसाब बावन तोले पाव रत्ती रहता है।




५२४. बाज़ार गर्म होना–(काम–धंधा तेज़ होना)


आजकल कालाबाज़ारी का बाज़ार गर्म है।




५२५. बात ही बात में–(तुरन्त)


बात ही बात में उसने तमंचा निकाल लिया।




५२६. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना)


पवन ने गलत बण्डल बाँध दिया तो सेठ जी उस पर बरस पड़े।




५२७. बात न पूछना–(आदर न करना)


रमेश ने सिनेमा देखने जाने से पहले पिता जी से नहीं पूछा।




५२८. बिल्ली के गले में घण्टी बाँधना–(स्वयं को संकट में डालना)


प्रधानाचार्य ने स्कूल का बहुत पैसा खाया है, लेकिन प्रश्न यह है कि प्रबन्धन से शिकायत करके बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे।




(भ)


५२९. भण्डा फोड़ना–(रहस्य खोलना/भेद प्रकट करना)


अनीता और सुचेता में मनमुटाव होने पर अनीता ने सुचेता की एक गुप्त और महत्त्वपूर्ण बात का भण्डाफोड़ कर यह ज़ाहिर कर दिया कि अब वह उसकी कट्टर दुश्मन है।




५३0. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना)


मेरे बेटे ने एम. बी. ए. की परीक्षा पास कर ली है, परन्तु मेरी आँखें अब भी उसके भविष्य पर लगी रहती हैं।




५३१ . भिरड़ के छत्ते में हाथ डालना–(जान–बूझकर बड़ा संकट अपने पीछे


लगाना) “तुमने इतने बड़े परिवार के व्यक्ति को पीटकर अच्छा नहीं किया। समझो, तुमने भिरड़ के छत्ते में हाथ डाल दिया।”




५३२. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना)


पुलिस की आहट पाते ही चोर भीगी बिल्ली बन जाते हैं।




५३३. भूमिका निभाना–(निष्ठापूर्वक अपने काम का निर्वाह करना)


अमिताभ बच्चन ने भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय की जो भूमिका निभाई है, वह देखते ही बनती है।




५३४. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण)


हमारा गाँव भेड़िया धसान का सशक्त उदाहरण है।




५३५. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला)


चुनावों में भाड़े के टटुओं की तो मौज आ जाती है।




५३६. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना)


दिल्ली में रहकर कुछ नहीं सीखा, वहाँ क्या भाड़ झोंकते रहे।




५३७. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश)


अनपढ़ व अन्धविश्वासी लोगों से मार्क्सवाद की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है।




५३८. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम)


स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों ने भागीरथ प्रयत्न किया।




(म)


५३९. मुख से फूल झड़ना–(मधुर वचन बोलना)


प्रशान्त की क्या बुराई करें, उसके तो मुख से फूल झड़ते हैं।




५४0. मन के लड्डू खाना–(व्यर्थ की आशा पर प्रसन्न होना)


‘मन के लड्डू खाने से काम नहीं चलेगा, यथार्थ में कुछ काम करो।




५४१ . मन ही मन में रह जाना–(इच्छाएँ पूरी न होना)


धन के अभाव में व्यक्ति की इच्छाएँ मन ही मन में रह जाती हैं।




५४२. माथे पर शिकन आना–(मुखाकृति से अप्रसन्नता/रोष आदि प्रकट


होना) जब मैंने उसके माथे पर शिकन देखी, तो मैं तभी समझ गया था कि मेरे प्रति उसके मन में चोर है।




५४३. मीठी छुरी चलाना–(प्यार से मारना/विश्वासघात करना)


सेठ दुर्गादास इतनी मीठी छुरी चलाता है कि सामने वाले को उसकी किसी बात का बुरा ही नहीं लगता है और वह कटता चला जाता है।




५४४. मुँह पर नाक न होना–(कुछ भी लज्जा या शर्म न होना)।


कुछ लोग राह चलते गन्दी बातें करते रहते हैं, क्योंकि उनके मुँह पर नाक नहीं होती।




५४५. मुट्ठी गरम करना–(रिश्वत देना)


सरकारी कर्मचारियों की बिना मुट्ठी गर्म किए काम नहीं चलता है।




५४६. मन मैला करना–(खिन्न होना)


क्या समय आ गया है किसी के हित की बात कहो तो वह मन मैला कर लेता है।




५४७. मुट्ठी में करना–(वश में करना)


अपनी धूर्तता और मक्कारी के चलते मेरे छोटे भाई ने माँ को मुट्ठी में कर रखा है।




५४८. मुँह की खाना–(हार जाना/अपमानित होना)


अमेरिका को वियतनाम युद्ध में मुँह की खानी पड़ी।




५४९. मीन मेख निकालना–(त्रुटि निकालना)


आलोचक का कार्य किसी भी रचना में मीन मेख निकालना रह गया




५५0. मुँह में पानी आना–(लालच भरी दृष्टि से देखना/खाने हेतु लालच)


राजमा देखकर मुँह में पानी आ जाता है।




५५१ . मंच पर आना–(सामना)


गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मंच पर आकर अंग्रेज़ों को सबक सिखाया।




५५२. मिट्टी का माधो–(मूर्ख)


अतुल की बात का क्या विश्वास करना वह तो मिट्टी का माधो है।




५५३. मक्खी नाक पर न बैठने देना–(इज़्ज़त खराब न होने देना)


पहले राजीव नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता था। अब उसे इसकी कोई परवाह ही नहीं है।




५५४. मोहर लगा देना–(पुष्टि करना)


डायरेक्टर साहब ने मेरी पक्की नौकरी पर मोहर लगा दी है।




५५५. मीठी छुरी चलाना–(विश्वासघात करना)


मनोज से बचकर रहना, वह मीठी छुरी चलाता है।




५५६. मुँह बनाना–(खीझ प्रकट करना)


मैडम ने जब विकास को डाँटा तो वह मुँह बनाने लगा।




५५७. मुँह काला करना–(कलंकित करना)


आज तुमने फिर वही कुकर्म करके मुँह काला करवाया है।




५५८. मैदान मारना–(विजय प्राप्त करना)


भारत ने टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैदान मार लिया।




५५९. मुहर्रमी सूरत–(शोक मनाने वाला चेहरा)


इतने दिन बाद मिले हो, क्या कारण है जो ये मुहर्रमी सूरत बना रखी है?




५६0. मक्खी मारना–(बेकार बैठे रहना)


तुम घर पर बैठे–बैठे मक्खी मारते हो कुछ काम धाम क्यों नहीं करते?




५६१ . माथे पर शिकन न आना–(कष्ट में थोड़ा भी विचलित न होना)


रामप्रकाश ने सरेआम अपने बच्चों के हत्यारे को कचहरी में मार डाला, पकड़े जाने पर भी उसके माथे पर शिकन न आई।




५६२. म्याऊँ का ठौर पकड़ना–(खतरे में पड़ना)


शहर के गुण्डे से पंगा लेकर तुमने म्याऊँ का ठौर पकड़ा है।




५६३. मुँह पकड़ना–(बोलने न देना)


मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है बोलने वाले का मुँह नहीं पकड़ा जाता है।




५६४. मुँह धो रखना–(आशा रखना)


वह हमेशा अच्छा काम ही करेगा तुम मुँह धो रखो।




(य)


५६५. यम की यातना–(असह्य कष्ट)


सैनिकों ने घुसपैठिये की इतनी पिटाई की कि उसे “यम की यातना” नज़र आने लगी।




५६६. यमराज का द्वार देख आना–(मरकर जीवित हो जाना)


नेपाल में आए जानलेवा भूकम्प से बच निकल आना, यमराज का द्वार देख आने के समान था।




५६७. युग बोलना–(बहुत समय बाद होना)


आज रात आसमान में दो चाँद–से प्रतीत होना युग बोलने के समान है।




५६८. युधिष्ठिर होना–(अत्यन्त सत्य–प्रिय होना)


महात्मा विदुर वास्तव में, मन–वचन और कर्म से युधिष्ठिर थे।




५६९. रफूचक्कर होना–(भाग जाना)


पुलिस के आने की सूचना पाकर दस्यु दलं रफूचक्कर हो गया।




५७0. रँगा सियार–(धोखेबाज़ होना)


आजकल बहुत से साधु वेशधारी रँगे सियार बनकर ठगने का काम करते हैं।




५७१ . राई का पहाड़ बनाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)


भूषण ने अपने काव्य में राई का पहाड़ बना दिया है।




५७२. रातों की नींद हराम होना–(चिन्ता, भय, दु:ख, आदि के कारण रातभर नींद न आना)


“क्या बताऊँ दोस्त, एक गरीब बाप के सम्मुख उसकी जवान बेटी की शादी की चिन्ता, उसकी रातों की नींद हराम कर देती है।”




५७३. रीढ़ टूटना–(आधारहीन रहना)


इकलौते जवान बेटे की अचानक मृत्यु पर गंगाराम को लगा जैसे उसकी रीढ़ टूट गई हो।




५७४. रंग बदलना–(बदलाव होना)


पूँजीवादी व्यवस्था में मनुष्य बेहद स्वार्थी हो गया है, अत: कौन कब रंग बदल ले, पता नहीं।




५७५. रोंगटे खड़ा होना–(भय से रोमांचित हो जाना)


घर में बड़ा साँप देखकर अमर के रोंगटे खड़े हो गए।




५७६. रास्ते पर लाना–(सुधार करना)


राजीव को रास्ते पर लाना बहुत कठिन है। मेहनतकश वर्ग रो–धोकर अपने दिन काट रहा है।




५७८. रंग में भंग होना–(आनन्द में विघ्न आना)


बराती के गोली छोड़ने से लड़के का चाचा मर गया, जिससे रंग में भंग हो गई।




५७९. रास्ता नापना–(चले जाना)


खाओ पियो और यहाँ से रास्ता नापो।




५८0. रंग लाना–(हालात पैदा करना)


मेहनत रंग लाती है, ये सच है।




(ल)


५८१ . लंगोटी बिकवाना–(दरिद्र कर देना)


शंकर ने अपने शत्रु जसबीर को अदालत के ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उस बेचारे की लंगोटी तक बिक गई है।




५८२. लकीर का फकीर होना–(रूढ़िवादी होना)।


पढ़े–लिखे समाज में भी बहुत से लकीर के फकीर हैं।




५८३. लेने के देने पड़ना–(लाभ के बदले हानि)


व्यापार में कभी–कभी लेने के देने पड़ जाते हैं।




५८४. लासा लगाना–(किसी को. फँसाने की युक्ति करना)


जमुनादास ने सुखीराम को तो ठग लिया है। अब वह अब्दुल करीम को लासा लगाने की कोशिश कर रहा है।




५८५. लोहे के चने चबाना–(कठिनाइयों का सामना करना)


किसी पुस्तक के प्रणयन में लेखक को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, तब सफलता मिलती है।




५८६. लौ लगाना–(प्रेम में मग्न हो जाना/आसक्त हो जाना)


सारे बुरे कामों को छोड़कर भीमा ने ईश्वर से लौ लगा ली है। अब वह किसी की तरफ को देखता तक नहीं है।




५८७. ललाट में लिखा होना–(भाग्य में लिखा होना)


वह कम उम्र में विधवा हो गई, ललाट में लिखे को कौन बदल सकता है।




५८८. लंगोटिया यार–(बचपन का मित्र)


अतुल तो मेरा लंगोटिया यार है।




५८९. लम्बी तानकर सोना–(निष्क्रिय होकर बैठना)


राजनीति में लम्बी तानकर सोने से काम नहीं चलेगा, बढ़ने के लिए मेहनत करनी होगी।




५९0. लाल–पीला होना–(गुस्से में होना)


महेन्द्र ने प्रश्न गलत कर दिया तो भइया लाल–पीला होने लगे।




५९१ . लंगोटी में फाग खेलना–(दरिद्रता में आनन्द लूटना)


कवि, लेखक और साहित्यकार तो लंगोटी में फाग खेलते हैं।




५९२. लल्लो–चप्पो करना–(चिकनी–चुपड़ी बातें करना)


क्लर्क, लल्लो–चप्पो करके अधिकारियों से अपना काम करा लेते हैं।




५९३. लहू के आँसू पीना–(दुःख सह लेना)


विभा की शादी के पश्चात् राज लहू के आँसू पीकर रह गया, उसने उफ़ तर्क नहीं की।




५९४. लुटिया डुबोना–(कार्य खराब कर देना)


गोर्बाच्योव ने संशोधनवादी नीति पर चलकर साम्यवाद की लुटिया डुबो दी।




५९५. वकालत करना–(पक्ष का समर्थन करना)


“मैंने अपने पिता की वकालत इसलिए नहीं की, क्योंकि वे मुझसे भी भरी पंचायत में झूठ बुलवाना चाहते थे।”




५९६. वक्त की आवाज़–(समय की पुकार)


गरीबी और शोषण को नष्ट करके ही संसार दोषमुक्त हो सकता है। यही वक्त की आवाज़ है।




५९७. वारी जाऊँ–(न्योछावर हो जाना)


काफी समय बाद सैनिक बेटे को देखकर माँ ने उसकी बलाएँ उतारते हुए कहा–“मैं वारी जाऊँ बेटे, तुम युग–युग जियो।”




५९८. विधि बैठना–(युक्ति सफल होना/संगति बैठना)


इस बार तो ओमप्रकाश की विधि बैठ गई, उसका कारोबार दिन दूना, रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।




५९९. विष उगलना–(क्रोधित होकर बोलना)


सामान्य बातों में विष उगलना अच्छी बात नहीं है।




६00. विष की गाँठ–(उपद्रवी)


देवेन्द्र तो विष की गाँठ है।




६0१ . विष घोलना–(गड़बड़ पैदा करना)


विभीषण ने राम को रावण के सभी रहस्य बताकर विष घोलने का कार्य किया।




(श्र), (श)


६0२. श्रीगणेश करना–(कार्य आरम्भ करना)


आज गुरुवार है, आप कार्य का श्रीगणेश करें।




६0३. शहद लगाकर चाटना–(किसी व्यर्थ की वस्तु को सँभालकर रखना)


सेठ दीनदयाल बड़ा कंजूस है। वह व्यर्थ की वस्तु को भी शहद लगाकर चाटता है।




६0४. शैतान के कान कतरना/काटना–(बहुत चालाक होना)


देवेन्द्र है तो लड़का पर शैतान के कान कतरता है।




६0५. शान में बट्टा लगाना–(शान घटना)


साइकिल की सवारी करने में आजकल के युवाओं की शान में बट्टा लगता




६0६. शेर की सवारी करना–(खतरनाक कार्य करना)


रोज प्रेस से रात को दो बजे आना शेर की सवारी करना है।




६0७. शिकंजा कसना–(नियन्त्रण और कठोर करना)


भारत ने अपने सैनिकों पर शिकंजा कस दिया है कि कोई भी घुसपैठिया किसी भी समय सीमा पर दिखाई दे, तो उसे तुरन्त गोली मार दी जाए।




६0८. शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना–(ऐसी स्थिति होना जिसमें दुर्बल को सबल का कुछ भी भय न हो)


सम्राट अशोक के काल में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पिया करते थे।




(स)


६0९. सफ़ेद झूठ–(सर्वथा असत्य)


चुनाव के समय नेता सफेद झूठ बोलते हैं।




६१ 0. साँप को दूध पिलाना–(शत्रु पर दया करना)


साँप को दूध पिलाकर केवल विष बढ़ाना है।




६१ १ . साँप सूंघना–(निष्क्रिय या बेदम हो जाना)


कक्षा में बहुत शोर–गुल हो रहा था, परन्तु गुरु जी के आते ही सभी बच्चे ऐसे हो गए जैसे उन्हें साँप सूंघ गया हो।




६१ २. सिर आँखों पर–(विनम्रता तथा सम्मानपूर्वक ग्रहण करना)


विनय इतना आज्ञाकारी बालक है कि वह अपने बड़ों के प्रत्येक आदेश को अपने सिर आँखों पर रखता है।




६१ ३. सिर ऊँचा करना–(सम्मान बढ़ाना)


पी. सी. एस. परीक्षा उत्तीर्ण करके महेश ने अपने माता–पिता का सिर ऊँचा कर दिया।




६१ ४. सोने की चिड़िया–(बहुत कीमती वस्तु)


पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।




६१ ५. सिर उठाना–(विरोध करना)


व्यवस्था के खिलाफ सिर उठाने की हिम्मत विरलों में ही होती है।




६१ ६. सिर पर भूत सवार होना–(धुन लग जाना)


राजीव को कार्ल मार्क्स बनने का भूत सवार है।




६१ ७. सिर मुंडाते ओले पड़ना–(काम शुरू होते ही बाधा आना)


छत्तीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव का प्रचार शुरू ही किया था कि जूदेव भ्रष्टाचार काण्ड में फँस गए, तब कांग्रेस ने चुटकी ली सिर मुंडाते ही ओले पड़े।




६१ ८. सिर पर हाथ होना–(सहारा होना)


जब तक माँ–बाप का सिर पर हाथ है, मुझे क्या चिन्ता है।




६१ ९. सिर झुकाना–(पराजय स्वीकार करना)


भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने सिर झुका दिया।




६२0. सिर खपाना–(व्यर्थ ही सोचना)


बुद्धिजीवी को सुबह से शाम तक सिर खपाना पड़ता है, तब रोटी मिलती है।




६२१ . सिर पर कफ़न बाँधना–(बलिदान देने के लिए तैयार होना)


क्रान्तिकारियों ने सिर पर कफ़न बाँधकर देश को आजाद कराने का प्रयास किया।




६२२. सिर गंजा करना–(बुरी तरह पीटना)


अपराधी के हेकड़ी दिखाते ही पुलिस अधिकारी ने उसका सिर गंजा कर दिया था।




६२३. सिर पर पाँव रखकर भागना–(तुरन्त भाग जाना)


घर में जाग होते ही चोर सिर पर पाँव रखकर भाग गया।




६२४. साँप छछूदर की गति होना–(असमंजस की दशा होना)


अपने वचन का पालन करने और पुत्र बिछोह उत्पन्न होने की स्थिति में राजा दशरथ की साँप छछूदर की गति हो गई थी।




६२५. समझ पर पत्थर पड़ना–(विवेक खो देना)


क्या तुम्हारी समझ पर पत्थर पड़ गया है जो रेलवे की नौकरी छोड़ रहे हो।




६२६. साँच को आँच नहीं–(सच बोलने वाले को किसी का भय नहीं)।


ईमानदार व्यक्ति पर कितने भी आरोप लगाओ वह डरेगा नहीं, सच है साँच को आँच नहीं।


६२७. सूरज को दीपक दिखाना–(किसी व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना)


महर्षि वशिष्ठ के सम्मान में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान।




६२८. संसार से उठना–(मर जाना)


बाबा को संसार से उठे तो वर्षों हो गए।




६२९. सब्जबाग दिखाना–(लालच देकर बहकाना)


सब्जबाग दिखाकर ही रमेश ने सुरेश के दस हज़ार लिए थे।




६३0. सिट्टी–पिट्टी गुम होना–(होश उड़ जाना)


कर्मचारी बैठे हुए गप–शप कर रहे थे, सेठ को देखते ही सबकी सिट्टी–पिट्टी गुम हो गई।




६३१ . सिक्का जमाना–(प्रभाव स्थापित करना)


वह हर जगह अपना सिक्का जमा लेता है।




६३२. सेमल का फूल होना–(अल्पकालीन प्रदर्शन)


कबीरदास ने मानव शरीर को सेमल का फूल कहा है।




६३३. सूखते धान पर पानी पड़ना–(दशा सुधरना)


बेहद गरीबी में वह दिन काट रहा था, लड़के की अच्छी कम्पनी में नौकरी लगी तो सूखे धान पर पानी पड़ गया।




६३४. सुई की नोंक के बराबर–(ज़रा–सा)


पाण्डवों ने दुर्योधन से पाँच गाँव माँगे थे, लेकिन उसने बिना युद्ध के सुई . की नोंक के बराबर भी भूमि देने से इनकार कर दिया।




६३५. हवाई किले बनाना—(कोरी कल्पना करना)


बिना कर्म किए हवाई किले बनाना व्यर्थ है।




६३६. हाथ खाली होना–(पैसा न होना)


महीने के अन्त में अधिकांश सरकारी कर्मचारियों के हाथ खाली हो जाते हैं।




६३७. हथियार डालना–(संघर्ष बन्द कर देना)


मैंने व्यवस्था के खिलाफ हथियार नहीं डाले हैं।




६३८. हक्का–बक्का रह जाना—(अचम्भे में पड़ जाना)


राज अपने चाचा जी को ट्रेन में देखकर हक्का–बक्का रह गया।




६३९. हाथ खींचना–(सहायता बन्द कर देना)


सोवियत रूस के विखण्डन के पश्चात् देश के साम्यवादियों की मदद से


रूस ने हाथ खींच लिए।




६४0. हाथ का मैल–(तुच्छ और त्याज्य वस्तु)


पैसा तो हाथ का मैल है, फिर आ जाएगा, आप क्यों परेशान हो?




६४१ . हाथ को हाथ न सूझना–(घना अँधेरा होना)


इस बार इतना कोहरा पड़ा कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।




६४२. हाथ–पैर मारना–(कोशिश करना)


मैंने बहुत हाथ–पैर मारे लेकिन कलेक्टर बनने में सफलता नहीं मिली।




६४३. हाथ डालना–(शुरू करना)


अंबानी जी जिस प्रोजेक्ट में हाथ डालते हैं, उसमें सफलता मिलती है।




६४४. हाथ साफ़ करना–(बेइमानी से लेना या चोरी करना)


तुम्हारी हाथ साफ करने की आदत अभी गई नहीं है।




६४५. हाथों हाथ रखना–(देखभाल के साथ रखना)


यह वस्तु मेरी माँ ने मुझे दी थी जिसे मैं हाथों हाथ रखता हूँ।




६४६. हाथ धो बैठना–(किसी व्यक्ति या वस्तु को खो देना)


यदि तुमने उसे अधिक परेशान किया तो उससे हाथ धो बैठोगे।




६४७. हाथों के तोते उड़ जाना–(होश हवास खो जाना)।


शिवानी के छत से गिरने से मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए।




६४८. हाथ पीले कर देना—(लड़की की शादी कर देना)


प्रोविडेण्ट का पैसा मिले तो लड़की के हाथ पीले करूँ।




६४९. हाथ–पाँव फूल जाना—(डर से घबरा जाना)


अच्छे वकील की पूछताछ से बड़े–बड़ों के हाथ–पाँव फूल जाते हैं।




६५0. हाथ मलना या हाथ मलते रह जाना–(पश्चात्ताप करना)


क्रोध में तुमने अपना घर तो जला ही दिया अब हाथ मलने से क्या लाभ?




६५१ . हाथ पर हाथ धरे रहना–(बेकाम रहना)


हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने से तो लड़की का विवाह नहीं होगा, उसके लिए तो आपको प्रयास करना होगा।




६५२. हाथी के पैर में सबका पैर–(बड़ी चीज के साथ छोटी का साहचर्य)


जब प्रधानमन्त्री इस्तीफ़ा दे देता है, तो मन्त्रिमण्डल स्वयं समाप्त हो जाता है, क्योंकि हाथी के पैर में सबका पैर होता है।




६५३. हाल पतला होना–(दयनीय दशा होना)


उसका व्यापार ढीला चल रहा है। अत: उसका हाल पतला है।




मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग इन हिन्दी


भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, 


फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में इनका जितना अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी।




मुहावर


‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’। इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है, क्योंकि यह अपने सामान्य अर्थ 


को छोड़कर असामान्य अर्थ प्रकट करता है। वाक्यांश शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है, परन्तु अपने इस संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े विचार या भाव को प्रकट करता है।




उदाहरणार्थ एक मुहावरा है– ‘काठ का उल्लू’। इसका अर्थ यह नहीं कि लकड़ी का उल्लू बना दिया गया है, अपितु इससे यह अर्थ निकलता है कि जो उल्लू (मूर्ख) काठ का है, वह 


हमारे किस काम का, उसमें सजीवता तो है ही नहीं। इस प्रकार हम इसका अर्थ लेते हैं– ‘महामूर्ख’ से।

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