लालची बन्दर
एक बार एक पेड़ पर एक चिंटू नाम का बंदर रहता था। वह इतना झगड़ालू था कि सभी उससे उलझने से बचते थे। वह इस कारण अपने आप पर और इतराने लगा।
एक दिन वह बन्दर खाने की खोज में जंगल में इधर-उधर भटक रहा था, तभी उसकी नजर एक बड़े आम के पेड़ पर पड़ी। उस पर पीले रंग के छोटे-छोटे फूल खिले हुए थे और हरे-हरे आम के केरी के गुच्छे भी लटक रहे थे।
उस बन्दर ने मन ही मन सोचा, ‘अरे वाह, यह आम का पेड़ तो कुछ दिनों में फलों से भर जाएगा, तो क्यों न यहीं अपना बसेरा बनाया जाए। वह फौरन उछलकर पेड़ पर चढ़ गया और चिल्लाने लगा," आज से यह पेड़ मेरा घर है। कोई भी इसके पास नहीं आएगा।”
उसी आम के पेड़ पर एक सुन्दर कोयल रहती थी वह चिंटू बन्दर से बोली, “लेकिन मोकू भैया, पहले तो मैं यहां आई थी।”
कोयल के ऐसा बोलते ही चिंटू ने उसे गुस्से से घूरा और कहा, “दिखाओ जरा अपना घोंसला। मैं तो जानता हूं तुम खुद अपने अंडे कौए के घोंसले में देती हो। बड़ी आई, मुझसे बहस करने वाली।”
मोकू के मुंह से ऐसी बातें सुनकर वह कोयल बहुत दुखी हुई और वह रोते हुए दूसरे पेड़ पर चली गई।
चिंटू की ऐसी हरकते देखकर आसपास के सभी जानवर वहां पर आ गए और बोले की तुम्हे कोयल के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए वह पहले से ही यहाँ रह रही है
लेकिन चिंटू के कान में जूं तक न रेंगी। वह उलटा सभी जानवरो पर बरस पड़ा, “तुम मुझे मत समझाओ। यह पेड़ अब से मेरा है और इसके फल भी।”
जंगल के सभी जानवर मिल-जुलकर रहते, पर चिंटू हमेशा अलग-थलग ही रहता। चिंटू के भी मजे ही मजे थे। कुछ ही दिनों में पेड़ आम से लद गए थे। वह रोज मीठे रसीले आम बड़े चाव से खाने लगा, साथ ही किसी को भी पेड़ के आसपास फटकने नहीं देता था।
कुछ महीनों बाद आम का मौसम खत्म होने लगा। पेड़ पर और फल आने रुक गए थे। चिंटू परेशान होकर पेड़ से बोला, “मुझे भूख लगी है और आम दो।”
पेड़ झुंझलाकर बोला, “अब बस भी करो। मैं थक गया हूं और सोना चाहता हूं। मैं फल अब अगले साल ही दूंगा।”
पेड़ फिर सुस्ताने लगा। चिंटू के कुछ दिन तो किसी तरह निकल गए, पर अब पेड़ पर एक फल भी नहीं लग रहा था और उसके पेट में चूहे दौड़ने रहे थे । उसने देखा की पास के सेब, संतरे और नाशपाती के पेड़ फलों से लदे हुए थे और बेलों पर हरे और काले अंगूर भी दिख रहे थे। ऐसे रसीले फलों को देखकर चिंटू के मुंह में पानी भर आया ।
रॉकी, मोकु और स्वीटी मजे से एक पेड़ से, दूसरे पेड़ पर आ-जा रहे थे और उनके फल कुतर-कुतर के खा रहे थे।
चिंटू को पहली बार अपने कहे पर पछतावा हो रहा था।
‘हाय, मैंने एक पेड़ पर हक जमाकर बहुत बड़ी गलती कर दी।’ लेकिन अभी भी उसका घमंड आगे आ रहा था। वह किसी भी हालत में झुकने को तैयार नहीं था।
चिंटू से जब भूख बरदास नहीं हुई तो वह हिम्मत करके संतरे के पेड़ के नीचे पहुंचा। उसमें रहने वाले सभी पक्षी और पिंकू खरगोश तन के खड़े हो गए। सबको एक साथ देखकर चिंटू थोड़ा घबराया, पर आदत के अनुसार रोब से बोला, “मुझे भूख लगी है, इसलिए संतरे खाने हैं।”
झट से पिंकू बोला, “भूल गए तुम्हारी बातें, इस पेड़ में तो हम रहते हैं, तो यह पेड़ और फल भी हमारे हुए। हम तुम्हें भला क्यों दें?”
संतरे और सेब के पेड़ों ने भी हामी भरी, तो चिंटू इतना सा मुंह लेकर वापस अपने पेड़ के नीचे आ गया।
‘कल मैं दूसरे वन जाऊंगा।’ वह मन ही मन सोचने लगा।
तभी किसी ने उसे बुलाया। वह चौंककर इधर-उधर देखने लगा। अचानक उसकी नजर मोकु पर पड़ी। उसके हाथों में ढेर सारे फल थे। मोकु बोला, “लो खाओ चिंटू, ये मैंने तुम्हारे लिए ही लिए हैं। तुम बड़े कमजोर लग रहे हो।”
चिंटू ने गौर से देखा, मोकु के चेहरे पर किसी प्रकार का व्यंग्य न था। वह सहज तरीके से मुसकरा रहा था।
चिंटू ने मोकु को गले लगाया और अपने की हुई गलती की माफी मांगी।थोड़ी ही देर में अन्य जानवर भी उसे घेरकर खड़े हो गए। सभी उसे मित्र बनाना चाहते थे। चिंटू भी जान गया कि मिल-जुलकर रहने में ही भलाई है। और सभी जोर जोर से हसने लगे ’
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